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पमेयचन्द्रिका टी० श० ८ १० १० सू० ६ कर्मप्रकृतिनिरूपणम् ५१७ भदन्त ! कति कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ? अष्ट, एवं सर्वजीवानाम् अष्ट कर्मप्रकृतयः स्थापयितव्याः यावत् वैमानिकानाम् । ज्ञानावरणीयस्य खलु भदन्त ! कर्मणः कियन्तः अविभागपरिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः? गौतम! अनन्ता अविभागपरिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः । नैरयिकागां भदन्त ! ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः कियन्तः अविभागपरिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ता अविभागपरिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः। एवं सर्व इस प्रकार से हैं-(नाणावरणिजं जाव अंतराइयं ) ज्ञानावरणीय यावत् आन्तरायिक (नेरहयाणं भंते ! कइ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! नैरयिक जोवों के कितनी कर्मप्रकृतियां कही गई हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (अ) नैरयिक जीवों के आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं। (एवं सव्वजीवाणं) इसी तरह से सर्व जीवों के ( कम्मपयडीओ ठावे. यव्या) आठ कर्मप्रकृतियां कही गई है (जाव वेमाणियाणं) यावत् वैमानिक देवों तक । ( नाणावरणिजस्स कम्मरस केवड्या अविभागपलिच्छया पण्णत्ता) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभागी परिच्छेद कहे गये हैं ? (गोयमा ) हे गौतम ! ( अणता अविभागपरिच्छेया पण्णत्ता) ज्ञानावरणीय कर्म के अविभागी परिच्छेद अनन्त कहे गये हैं। (नेरइयाणं भंते! णाणावरणिजस्स कम्मस्स केवइया अविभाग पलिच्छेया पण्णत्ता) हे भदन्त ! नैरयिक जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म के अविभागी परिच्छेद कितने कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (अण्णंता अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता) नैरयिक जीवों के ज्ञानावरणीय घरणिज, जाव अंतराइयं ) ज्ञान॥१२॥ यथा मन्तशय सुधानी 3 प्रतिया छ. ( नेरइयाण भते ! कइ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ १) महन्त ! ना२४ वान की प्रतियो डी छ ? (गोयमा ! अट्ठ) गौतम ! ना२४ वानी म18 प्रतियोडी. छ. (एवं सव्वजीवाण) मे०८ प्रमाणुस वानी ( कम्मपगडीओ ठावेयव्वा जाव वेमाणियाण) वैमानि: । प-तना समरत भवानी म भ प्रतिया ४डी छ. (णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवइया अवि. भागपलिच्छेया पण्णत्ता ?) 3 महन्त ! ज्ञानावरणीय भनाटसा विमा परिवामा माया छ ? ( गोयमा ! अणता अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता ?) है गौतम! ज्ञाना१२०ीय भना मनात विमा परिछे ४ह्या छ. ( नेर. इयाण भते! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवड्या अविभागपलिच्छेया पण्णता?) હે ભદન્ત! નારકેના જ્ઞાનાવરણીય કર્મના અવિભાગી પરિચ્છેદ કેટલા કહ્યા छ १ (गोयमा ! ) 3 गौतम ! ( अण्णता अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता ) नार.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭