SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टो० श० ८ ० १० सू० २ आराधनास्वरूपनिरूपणम् ४८३ ज्ञानाराधना देव अस्त्येककः कश्चन जीवः ज्ञानस्य जघन्यायां सत्यामपि आराधनाया उत्कृष्टां चारित्राराधनामाराध्य तेनैव भवग्रहणेन सिध्यति यावत् सर्वदुःखानामन्तं करोति, इत्यादि पूर्ववदेव सर्वं बोध्यम्, किन्तु 'नवरं अस्थेगइए कप्पाईस उववज्ज' नवरं ज्ञानदर्शनाराधनापेक्षया चारित्राराधनायां विशेषस्तु अस्त्येककः कश्चनोत्कृष्टचारित्राराधनावान् जीवः कल्पातीतेषु ग्रैवेयकादिष्वेव देवलोकेषु उत्पद्यन्ते, नतु सौधर्मादिकल्पोपपन्न देवलोकेषु, उत्कृष्टचारित्राराधना 1 " अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( उक्कोसियं णं भंते ! चरितारहणं आहेत्ता कहहिं भवग्गहणेहिं सिज्झइ, जाव अंत करेइ ) हे भदन्त ! जो जीव उत्कृष्ट चारित्राराधना को आराधित करता है - वह जीव कितने भवों को धारण करनेके बाद सिद्ध होता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( एवं चेव) हे गौतम! ज्ञानाराधना की तरह यहां पर भी समझना चाहिये अर्थात् - ज्ञान की जघन्य भी आराधना हो परन्तु चारित्र की उत्कृष्ट आराधना को आराधित करके कोइएक जीव उसी गृहीत भव में सिद्ध होता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देता है इत्यादि पूर्व कथन के अनुसार यहां पर भी जानना चाहिये - ( नवरं ) परन्तु ( अत्येगइए कप्पाईयसु उववज्ज) ज्ञानाराधना और दर्शनारधना की अपेक्षा जो विशेषता यहां पर है वह ऐसी है कि कोइएक उत्कृष्ट चारित्राराधना वाला जीव कल्पातीत ग्रैवेयक आदि देवलोकों में ही उत्पन्न होता है - सौधर्मादि कल्पोपपन्नक देवलोकों में नहीं। क्यों गौतम स्वामीनी प्रश्न - ( उक्कोसियं णं भंते ! चरिताराहणं आहेत्ता कइ हि भवगाहणे हिं' सिज्झइ जाव अंत करेइ ) डे लहन्त ! ? ७१ उत्ॣष्ट ચારિત્રારાધનાનું આરાધન કરે છે, તે જીવ કેટલા ભવ કરીને સિદ્ધ થાય છે, મુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય છે અને સમસ્ત દુ:ખાના અંત કરે છે ? भडावीर अलुनो उत्तर- " एवंचेव " हे गौतम! या विषयभां प જ્ઞાનારાધના પ્રમાણે જ કથન સમજવું, એટલે કે ભલે જ્ઞાનની જધન્ય પણ આરાધના હાય, પરન્તુ ચારિત્રની ઉત્કૃષ્ટ આરાધનાનું આરાધન કરીને કોઈક જીવ એજ ગૃહીત ભવમાં સિદ્ધ થાય છે અને સમસ્ત દુ:ખાના અંત કરે छे, छत्याहि पूर्व स्थनना नेवुन उथन सहीं पशु समन्वु " नवर " परन्तु ( अत्थेइए कप्पाईयपसु उववज्जइ ) ज्ञानाराधना ४२तां यारित्राराधनाना ઉત્કૃષ્ટ આરાધનાના વિષયમાં આ પ્રમાણે વિશેષતા છે. કાઇક ઉત્કૃષ્ટ ચારિ ત્રારાધનાવાળા જીવ કલ્પાતીત જૈવેયક આદિ દેવલાકામાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy