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________________ ५०६ भगवतीसूत्रे द्विविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-अणाइए सपज्जवसिए आणाइए अपज्जवसिए वा' तद्यथाअनादिकः सपर्यवसितः सान्तः, अनादिकः अपर्यवसितो वा अनन्तो वा 'एवं जहा तेयगस्स संचिट्ठणा तहेव, एवं जाव अंतराइय कम्मस्स' एवम् उक्तरीत्या यथा तैजसस्य शरीरप्रयोगवन्धस्य संस्थापना पूर्व प्रतिपादिता, तथैव ज्ञानावरणीयकार्मणस्यापि शरीरप्रयोगबन्धस्य स्थापना प्रतिपत्तव्या, एवं रीत्या यावत दर्शनावरणीय-वेदनोय-मोहनीयाऽऽयुष्क-नाम-गोत्रा-ऽऽन्तरायिककार्मणस्य शरीरप्रयोगबन्धस्य वक्तव्यता प्रतिपादनीया, विशेषस्त्वग्रे वक्ष्यते, अथ कार्मणशरीरप्रयोगस्य बन्धान्तरं प्ररूपयितुमाह-' णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगबंधंतरेणं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? ' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरमयोगबन्धान्तरं कम्मासरीरप्पओगबंधे दुविहे पण्णत्ते ) ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध दो प्रकार का कहा गया है-(तं जहा ) जो इस प्रकार से है(अणाइए सपज्जवसिए, अणाइए अपज्जवसिए) अनादि सपर्यवसित -सान्त, और अनादि अपर्यवसित-अनन्त । (एवं जहा तेयगस्स संचि. दृणा तहेव, एवं जाव अंतराइयकम्मस्स) उक्तरीति से जैसी तैजसश. रीरप्रयोगबंध की वक्तव्यता पहिले कही गई है, उसी तरह से ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध की भी वक्तव्यता जाननी चाहिये। इसी तरह से दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय इन कार्मणशरीरप्रयोगबंधों की भी वक्तव्यता कहनी चाहिये ! इस विषय में जो विशेषता होगी-उसे आगे कहा जावेगा। ____ अब सूत्रकार कार्मणशरीरप्रयोग बन्ध के अन्तर की प्ररूपणा करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-(णाणावरणिज्जकम्मासरीरशरीर प्रयोग मे २२। यो छे. " तजहा" २ ॥२॥ नीये प्रभारी छे-(अणाइए सपज्जवसिए अणाइय अपज्जवसिए) (1) सनालिस५यवसित (All सान्त ) मने (२) RTE A५ सित (मना मनत) ( एवं जहा तेयगस्स सचिट्ठणा तहेव, एवं जाव अंतराइयकम्मस्स) पूर्वरित शतवी તૈજસ શરીર પ્રગબંધની વક્તવ્યતાનું કથન પહેલાં કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે જ્ઞાનાવરણીય કાર્મણ શરીર પ્રગબંધની વક્તવ્યતા પણ સમनवी. मेरी प्रभारी शनावरणीय, वहनीय, भाडनीय, आयु, नाम, गोत्र અને અન્તરાય, આ કર્મણ શરીર પ્રયોગબંધોની પણ વક્તવ્યતા સમજવી. આ વિષયમાં જે વિશેષતા છે તે આગળ પ્રકટ કરવામાં આવશે. હવે સૂત્રકાર કામણ શરીર પ્રગબંધના અતરની પ્રરૂપણ કરે છે – આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ હવામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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