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________________ २५६ भगवतीस्त्र साक्षादेव तामाह-यावत् मनुष्याणामित्यादि, तथा च यावत्करणात वायनां पञ्चे. न्द्रियतिरश्वां मनुष्याणां च देशबन्धो जघन्येन एकं समयं भवति, उत्कृष्टेन वायुनां त्रीणि वर्षसहस्राणि, पञ्चेन्द्रियतिरश्वां मनुष्याणां च सर्वबन्धसमयोनानि त्रीणिपल्योपमानि देशबन्धो भवतीति भावः, उक्तरीत्या औदारिकशरीरपयोगबन्धस्य कालं प्ररूप्य अथ तस्यैवान्तरं प्ररूपयितुमाह-"ओरालियसरीरप्पओगबंधंतरेणं भंते । कालओ केवच्चिरं होइ ?' गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! औदारिकशरीरप्रयोगकथन से मनुष्यों के औदारिक शरीर के देशबंध की स्थिति लभ्य हो जाती है फिर भी जो सूत्रकार ने उसे "यावत् मनुष्याणाम्" ऐसा कहकर प्रकट किया है उसका कारण उनका अन्तिम कथन है। यहां " यावत्" पद से यही प्रकट की गई है कि वायुकायिकों के, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के और मनुष्यों के औदारिक शरीर का देशबंध जघन्य से एक समय तक होता है और उत्कृष्ट से वह वायुकायिक जीवों के एक समयकम तीन हजार वर्षतक और पंचेन्द्रियतियंचों के तथा मनुष्यों के एक समयकम तीनपल्योपमतक होता है। उक्तरीति से औदारिक शरीरप्रयोगबंध के काल की प्ररूपणा करके अब सूत्रकार उसके अन्तर की प्ररूपणा करते हैं-(ओरालिय सरीरप्पओगपंधंतरे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ) इसमें गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि हे भदंत ! औदारिक शरीरप्रयोगबंध का अंतर काल की अपेक्षा कितने कालतक रहता है ? अंतर દારિક શરીરના દેશબંધની સ્થિતિ પ્રકટ થઈ જાય છે, છતાં પણ સૂત્રકારે तर “ यावत् मनुष्याणाम् " मा प्रभाथे डीने ५४८ ४२री छ, तेनुं ।२९५ नभने अतिम अथन छ. मी " यावत् " ५४थी मेरा पात प्रट ४२पामा આવી છે કે વાયુકાચિકે, પંચેન્દ્રિય તિર્યંચે અને મનુષ્યોના ઔદારિક શરીરના દેશબંધને કાળ જઘન્યની અપેક્ષાએ એક સમય હોય છે, અને ઉલ્લુ બની અપેક્ષાએ તે વાયુકાયિક જીમાં ૩૦૦૦ વર્ષ કરતાં એક ઓછા સમયને અને પંચેન્દ્રિય તિય તથા મનુષ્યોમાં ત્રણ પત્યે પમ કરતાં એક ઓછા સમયને હેય છે. આ રીતે ઢારિક શરીર પ્રયોગ બંધના કાળનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર તેના અંતરની પ્રરૂપણ કરે છે– गौतम स्वामीना प्रश्न-" ओरालियसरीरप्पओगध'तरे ण' भंते ! कालओ केवच्चिर होइ १ ) 3 महन्त ! मौ२४ शरीर प्रयो। 'ध भतर કાળની અપેક્ષાએ કેટલા કાળ સુધી રહે છે? “અંતર” એટલે વિરહકાલ. श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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