SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ भगवतीसूत्रे ' से किं तं बंधमपच्चइए ? ' हे भदन्त ! अथ कि स बन्धनप्रत्ययिकः सादिबन्ध उच्यते? भगवानाह-'वंधणपच्चइए जंणं परमाणुपुग्गलाणं दुपएसियाणं, तिपएसियाणं जाव दसपएसियाणं संखेज्जपएसियाणं, अणंतपएसियाणं भंते! खंधाणं' हे गौतम ! बन्धनप्रत्ययिकः सादिबन्धः - यत् खलु परमाणुपुद्गलानां द्विपदेशिकानां, त्रिप्रदेशिकानां यावत् चतुःपञ्चपट्सप्ताष्ट नवदशपदेशिकानाम् ‘संख्येयप्रदेशिकानाम् , असंख्येयपदेशिकानाम् अनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानाम् ‘वेमायनिद्धयाए, वेमायलुक्खयाए, वेमायनिद्धलुक्खयाए बधणपच्चइए णं बंधे समुप्पज्जइ, प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से किं तं बधणपच्चइए' हे भदन्त ! वह बन्धनप्रत्ययिक सादि बंध क्या कहलाता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'बंध. जपच्चइए जं णं परमाणुपोग्गला दुपएसिया, तियपएसिया, जाव दसपएसिया, संखेजपएसिया, असंखेज्जपएसिया, अणंतपएसिया णं भंते ! बंधाणं' हे गौतम ! बंधनप्रत्ययिक सादिवंध वह है जो परमाणुपुद्गलों का, द्वि प्रदेशिकों का, त्रिप्रदेशिकों का, यावत् चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दश, प्रदेशिकों का, संख्यातप्रदेशिकों का, असंख्यातप्रदेशिकों का, अनन्तप्रदेशिकों का अर्थात् ऐसे परमाणु पुद्गलस्कन्धों का -(वेमायनिद्धयाए, वेमायलुक्खयाए वेमायनिद्धलुवयाए ) विषमस्निग्धता गुण के द्वारा-विषम है मात्रा जिसमें ऐसी जोस्निग्धता, उस विषमांश स्निग्धता के द्वारा, विषमांशरूक्षता के द्वारा, विषमाशस्निग्धता और रूक्षता इन दोनों के द्वारा उत्पन्न होता है । यह बंधन प्रत्यપ્રાપ્તિ જે સાદિક વિશ્વસા બંધમાં કારણરૂપ હોય છે, તેને પરિણામ પ્રત્યયિક સાદિક વિસ્રસા બંધ કહે છે. गीतमा स्वामी महावीर प्रभुने । स पूछे छ -( से कि' त बंधणपच्चइए १) महन्त ! ते मधन प्रत्ययि साह ५ अने छ ? मडावीर प्रसुनी उत्तर--(बधणपच्चइए जं णं परमाणुपोगला दुपएसिया, तियपएसिया, जाव दसपएसिया, संखेजपएसिया, असंखेज्जसएसिया, अणतपएसिया ण खंधाण) ७ गौतम ! धन प्रत्ययि सात मध त छ है દ્વિપદેશિક, ત્રિપ્રદેશિક, અને રસપ્રદેશિક પર્યન્તના પરમાણુ પુલ સ્કોના, તથા સંખ્યાત પ્રદેશિક, અસંખ્યાત પ્રદેશિક અને અનંત પ્રદેશિક પરમાણુ पदस धोना ( वेमायनिद्धयाए, वेमायलुक्खयाए, वेमायनिद्धलुक्खयाए) વિષમ સિનગ્ધતા ગુણ દ્વારા (ચીકાશના ગુણ દ્વારા) જેમાં સ્નિગ્ધતાની માત્રા વિષમ છે એવી વિષમાંશ સ્નિધતા દ્વારા, વિષમાંશ રૂક્ષતા દ્વારા, વિષમાંશ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy