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________________ प्रमेयचन्द्रिका टो० श० ८ ० १ सू० २ विस्रसाबन्धनिरूपणम् १७३ सादिक विस्रसाबन्धः खलु आदिना सहितः सादिको यो विसाबन्धः स तथा, कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते ' हे गौतम! सादिक विस्रसान्धस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, ' तं जहा - बंधण पच्चइए, भायणपच्चइए, परिणाम पच्चइए ' तद्यथा - बन्धप्रत्ययिकः, भाजनप्रत्ययिकः, परिणामप्रत्ययिकश्च तत्र बध्यतेऽनेनेति बन्धनं विवक्षित स्निग्धतादिको गुणः स एव प्रत्ययो हेतुर्यत्र स बन्धन प्रत्ययिकः, एवं भाजनमाधारः प्रत्ययो यत्र स भाजनप्रत्ययिकः, तथैव परिणामो रूपान्तरमाप्तिः प्रत्ययो यत्र स परिणामपत्ययिकः इति भावः, गौतमः पृच्छति " भंते! कविते) हे भदन्त ! सादिकविससाबंध कितने प्रकार का कहा गया है। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम ! (तिविहे पण्णत्ते) सादिक विस्रसाबंध तीन प्रकार का कहा गया है । ( तं जहा ) जो इस प्रकार से है - ( बंधणपच्चइए, भायणपच्चइए परिणामपच्चइए) बंधनप्रत्ययिक, भाजनप्रत्ययिक और परिणामप्रत्ययिक ( वध्यते अनेन इति बंधनं ) इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिसके द्वारा बांधा जाय वह बंधन है ऐसा बंधन विवक्षित स्निग्धता आदिगुण होता है। वही जिस बंध में हेतु होता है वह बंधनप्रत्यधिक सादिक विस्रसावध है। भाजन नाम आधार का है। यह आधार जिस बंध में हेतु-कारण होता है वह भाजनप्रत्ययिक सादिक विस्रसाबंध है । रूपांतर प्राप्ति का नाम परिणाम है। यह परिणामान्तरप्राप्ति जिस सादिक विसस्राबंध में हेतु होती है वह परिणामप्रत्यधिक सादिक विस्रसाबंध है। अब गौतम गौतम स्वामीनो प्रश्न - ( साइय वीससा बधे ण' भरते ! कइविहे पण्णत्ते ? ) હું ભઇન્ત ! સાદિક વિસસા મધ કેટલા પ્રકારને કહ્યો છે ? महावीर अलुनो उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतभा ! " तिविहे पण्णत्ते अहा " साहि विस्वसा अधना नीचे प्रभाग अधर छे - ( बंधणपच्चइए भायणपच्चइए, परिणामपच्चइए, ) (१) अधन प्रत्ययिङ लागन अत्ययिष् अने (3) परिणाम प्रत्ययि. ( बध्यते अनेन इति बन्धनं ) मा व्युत्पत्ति प्रमाणे भेना द्वारा अंधવામાં આવે તે બંધન છે, એવુ` મ`ધન જેવુ. આગળ કરવામાં આવશે તે સ્નિગ્ધતા આદિ ગુણા છે. તે ગુણા જ જે બંધના કારણરૂપ હોય છે, તે 'ધને ખધન પ્રત્યયિક સાક્રિક વિસ્રસા ખધ કહે છે. ભાજન એટલે આધાર. આ આધાર જે મધમાં કારરૂપ હોય છે, તેને ભાજન પ્રત્યયિક સાકિ વિસસા મધ કહે છે. પરિણામ એટલે રૂપાન્તર પ્રાપ્તિ. તે પરિણામાન્તર श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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