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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ ३० ८ सू० ५ कर्मप्रकृति - परीषद्दवर्णनम् १०१ मज्ञप्ताः १ गौतम । एवमेव यथैव पविधबन्धकस्प | एकविवबन्धकस्य स्खल भदन्त ! सयोगिभवस्थ केवलिनः कति परीषहाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! एकादशपरीषाहाः प्रज्ञप्ताः, नत्र पुनर्वेदयति, शेषं यथा षड्विधवन्धकस्य । अबन्धकस्य खलु भदन्त ! अयोगिभवस्थ केवलिनः कति परीषहाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! एकादशatranasareta कई परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त ! एक प्रकार के कर्म का बंध करने वाले वीतराग छद्मस्थ के कितने परीषद होते हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम! ( एवं चेव जहेव छव्त्रिह बंधगस्स ) जिस प्रकार से छह प्रकार के कर्मों का बंध करने वाले जीव के परीषहों का होना कहा गया है उतने ही परीषहों का होना एक प्रकार के कर्म का बंध करनेवाले वीतराग छद्मस्थके कहा गया है। (एगविहबंधगस्स णं भंते! सजोगि भवत्थ केवलिस कइ परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त | एकविधबं क सयोगी भवस्थ केवलज्ञानी के कितने परीषह होते हैं ? (गोयमा ) हे गौतम! एकविध बंधक सयोगी भवस्थ केवलज्ञानी के ( एक्कारस परी सहा पण्णत्ता) ग्यारह ११ परीषह होते हैं। (नवपुण वेएइ) परन्तु वह एक साथ नौ परीषहों का वेदन करता है । ( सेसं जहा छविह area ) बाकी का और सब कथन ६ प्रकार के कर्मों को बंध करने वाले जीव की तरह से जानना चाहिये । (अबंधगस्त णं भंते । अजोगि भवत्थ केवलिस कह परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त ! कर्मबंधरहित કમન उत्थर कई परीसहा पण्णत्ता ? " हे लहन्त ! ये प्रारना અધ કરનાર વીતરાગ છદ્મસ્થને કેટલા પરીષહો વેઠવા પડે છે ? (6 गोयमा ! " हे गौतम ! " एवं चैव जहेव छव्विहब धगस्स ) छ પ્રકારના કર્મોના બંધ કરનાર જીવના જેટલા પરીષહા કહ્યા છે, એટલા જ પરીષહા એક પ્રકારના કર્મના અધ કરનાર વીતરાગ છઠ્ઠુમર્થના પણ કહ્યા छे. ( एगविह बधगह णं भंते ! सजोगी भवत्थ केवलिस कह परीसहा पण्णत्ता ?) હૈ ભદન્ત ! એક પ્રકારના કર્મના બંધ કરનાર સચાગી ભવસ્થ કેવળજ્ઞાનીના डेटा परीषडा उद्या हे ? " गोयमा ! " हे गौतम मे प्राश्ना अनो अध पुरनार सयोगी लवस्थ ठेवणज्ञानीना ( एक्कारस परीसहा पण्णत्ता ) अगि यार परीषÈ। उह्या छे. ( नव पुण वेएइ ) परन्तु ते खेड साथै नव परीष होनुं वेहन पुरे छे. ( सेसं जहा छब्बिहब धगरस ) माडीतुं समस्त प्रथन अारना मना मध अश्नार लवना उथन प्रमाणे समन्धुं (अब धगस्स णं भवे ! अोगिभवत्थ केवलिस कह परीबड़ा पण्णत्ता १ ) डे लहन्त अभ श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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