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________________ १०२ भगवती सूत्रे परीषहाः प्रज्ञप्ताः, नव पुनर्वेदयति, यस्मिन् समये शीतपरीषहं वेदयति, नो तस्मिन् समये उष्णपरीषहं वेदयति यस्मिन् समये चर्यापरीषहं वेदपति नो तस्मिन् समये शय्यापरीषदं वेदयति, यस्मिन् समये शय्यापरीषदं वेदयति नो तस्मिन् समये चर्यापरीषहं वेदयति ॥ म्रु० ५ ॥ टीका- 'कह णं भंते! कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! कति कियत्यः खलु कर्मप्रकृतयः सावद्यानुष्ठानलक्षणाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह 'गोयमा ! अयोगी भवस्थ केवली के कितने परीबह होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! कर्मबंधरहित अयोगी भवस्थ केवली के ( एक्कारसपरीसहा पण्णत्ता ) ११ परीषह होते हैं । ( नव पुणवेदेह ) परन्तु वे एक साथ नौ परीषहों का वेदन करते हैं। (जं समयं सोघपरिसहं वेएइ, नो तं समयं उसि णपरीसह वेएह, जं समयं उसिणपरीसहं वेएह, नो तं समयं सीय परीसहं वेएर, जं समयं चरियापरिसहं वेएइ, नो नं समयं सेज्जापरीसहं des, जं समयं सेज्जापरीसहं वेएइ, नो तं समयं चरियापरीसहं वेएइ) क्यों कि जिस समय में वे शीतपरीषह का वेदन करते हैं उस समय उष्णह का वेदन नहीं करते हैं। और जब वे उष्णपरीषह का वेदन करते हैं तब शीतपरीषह का वेदन नहीं करते हैं। तथा जब वे चर्यापरीषह का वेदन करते हैं, उस समय वे शय्यापरीषह का वेदन नहीं करते हैं, और जब वे शय्यापरीषद का वेदन करते हैं, तब वे र्यापरीषह का वेदन नहीं करते हैं । अध रहित योगी लवस्थ ठेवलीना डेटा परीष। उह्या छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! गंध रहित अयोगी लवस्थ ठेवलीना ( एक्कारस परीसहा पण्णत्ता ) अगियार परीषडे। उह्या छे, ( नव पुण वेएइ ) परन्तु तेथे भे साथै नव परीषहेानुं वेहन उरे छे. ( जं समयं सीयपरिसर वेएइ, नो सं समयं उसिणपरीसहं वेएर, जं समयं उसिणपरीसह वेएइ, नो त समय सीयपरीसह वेएइ, जं समयं चरियापरीसहं वेएर, नो तं समयं सेज्जापरीसहं वेएर, अं समयं सेज्जापरीसह वेएइ, नो त समयं चरियापरीसहं वेएइ ) २ જે સમયે તેઓ શીતપરીષનું વેદન કરે છે, તે સમયે ઉષ્ણુપરીષહનું વેદન કરતા નથી, અને જે સમયે ઉષ્ણુપરીષહતુ. વેદન કરે છે, તે સમયે શીતપરીબહનું વેદન કરતા નથી. અને જ્યારે તે ચર્ચાપરીષહનું વેદન કરે છે, ત્યારે શય્યાપરીષહતું વેદન કરતા નથી, અને જ્યારે તે શમ્યા પરીષહનું વૈદન કરે છે, ત્યારે ચર્ચાપરીષહનું વેદન કરતા નથી. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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