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________________ १०० भगवतीसूत्र प्रज्ञप्ताः, द्वादश पुनर्वेदयति, यस्मिन् समये शीतपरीपहं वेदयति, नो तस्मिन् समये उष्णपरीषहं वेदयति, यस्मिन् समये उष्णपरीषहं वेदयति नो तस्मिन् समये शीतपरीषहं वेदयति, यस्मिन् समयेचर्यापरीषहं वेदयति, नो तस्मिन् समये शय्या परीषहं वेदयति, यस्मिन् समये शय्यापरीषहं वेदयति, नो तस्मिन् समये चर्यापरीषहं वेदयति । एकविधवन्धस्य खलु भदन्त ! वीतरागछमस्थस्य कति परीषहाः छद्मस्थ जीव के कितने परीषद होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! छह प्रकार के कर्मों का बंध करने वाले सरागछद्मस्थ जीव के (चोइस परीसहा पण्णसा) चौदह परीषह होते हैं। (बारस पुणवेएइ) परन्तु वह एक साथ बारह १२ परीषहों का वेदन करता है। (जं समयं सीयपरीसहं वेएइ णो तं समयं उसिणपरीसहं वेएइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेएइ, नो तं समयं सीयपरीसहं वेएइ, जं समयं चरिया परीसहं वेएइ, णो तं समयं सेन्जापरीसहं वेएइ, जं समयं सेन्जापरीसहं वेएइ, णोतं समयं चरियापरीसहं वेएइ ) क्यों कि जिस समय वह शीतपरीषह का घेदन करता है उस समय वह उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता है । तथा जिस समय वह उष्णपरीषह का वेदन करता है उस समय वह शीतपरीषह का वेदन नहीं करता है । जिस समय वह चर्यापरीषह का वेदन करता है-उस समय वह शय्यापरीषह का वेदन नहीं करता है और जिस समय वह शय्यापरीषह का वेदन करता है उस समय वह चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता है। (एक्कविहवंधगस्स णं भंते ! છ પ્રકારના કર્મોને બંધ કરનાર સરાગ છદ્મસ્થ જીવને કેટલા પરીષહ સહન ४२वा ५ छ१ (गोयमा !) गौतम ! ७ प्रश्न मान। म ४२ना२ स। छम२५ सपने (चोदसपरीसहो पण्णता) यौह पशषडा सहन ४२१॥ ५ छ. “बारस पुण वेएइ" ५४ ते । साथे मा२ परीषडानु वेहन रे छ. “जं समयं सीयपरीसह वेइ, णो त समय उसिणपरीसह वेएइ, ज समय उसिणपरीसह वेएइ, नो त समय सीयारीसह वेएइ, जं समयं चरियापरीसहं वेएइ, णो त समय सेज्जापरीसई वेएइ, जं समयं सेज्जापरीसह वेएइ, णो त समय चरियापरीसह वेएइ ) ४१२९५ २ समये तीत परीવહનું વેદન કરે છે તે સમયે તે ઉણપરીષહનું વેદન કરતું નથી. તથા જે સમયે તે ઉષ્ણપરીષહનું વેદન કરે છે, તે સમયે તે શીતપરીષહનું વદન કરતે નથી. તથા જે સમયે તે ચર્યાપરીષહનું વેદન કરે છે, તે સમયે તે શાપરીષહનું વેદન કરતું નથી. તથા જે સમયે તે શય્યાપરીષહનું વેદન કરે છે, તે समये ते यापरीषनु वहन रता नथी. “एकविह बंधगस्स गं भंते ! वीय. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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