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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ८ उ० ८ ० ५ कर्मप्रकृति-परीषवर्णनम् ९९ यति, नो तस्मिन् समये उष्णपरीपहं वेदयति, यस्मिन् समये उष्णपरीषहं वेदयति नो तस्मिन् समये शीतपरीषहं वेदयति, यस्मिन् समये चर्यापरीपहं वेदयति, नो तस्मिन् समये नैषेधिकीपरीषहं वेदयति, यस्मिन् समये नैषेधिकीपरीपहं वेदयति, नोतस्मिन् समये चर्यापरीषहं वेदयति । एवम् अष्टविधबन्धकस्यापि। षड्विधबन्धकस्य खलु भदन्त ! सरागछद्मस्थस्य कति परिषहाः प्राप्ताः ? गौतम ! चतुर्दश परीपहाः पह होते हैं । ( वीसं पुणवेएइ) परन्तु वेदन जीव के एक साथ बीस परीषहों का होता है। (जं समयं सीयपरीसहं वेएइ, णो तं समयं उसिण परीसहं वेएइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेएइ, णो तं समयं सीयपरीसहं वेएइ, जं समयं चरियापरीसहं वेएइ, णो तं समयं निसीहियापरीसहं वेएइ ) जिस समय शीतपरीषह का वेदन होता है, उस समय उष्णपरीपह का वेदन नहीं होता है, तथा जिप्त समय उष्णपरीषह का वेदन होता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं होता है । जिस समय चर्या परीषह का वेदन होता है उस समय नैषेधिकी परीषह का वेदन नहीं होता है और जिस समय नैषेधिकी परीषह का वेदन होता है उस समय चर्या परीषह का वेदन नहीं होता है । ( एवं अट्ठविहर्ष धगस्स वि) इसी तरह से आठ प्रकार के कर्म का बंध करने वाले जीव के भी बाईस परीषह होते हैं। परन्तु वेदन २० बीस का ही होता है एक साथ। (छविहबंधगस्स णं भंते ! सरागछ उमस्थस्स कइ परीसहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! छह प्रकार के कर्मों का बंध करने वाले सराग સાત પ્રકારના કર્મને બંધ કરનાર જીવને બાવીશ પરીષહે સહન કરવા પડે छे. (बीस पुण वेएइ) ५५ मे४ साथै २० परीषानुन वहन ४२j ५ छ. (जं समय सीयपरीसह वेएइ, णो त समय उसिणपरीसह वेएइ, ज समयं उसिण परीसह वेएइ, णो त समय सीयपरीसह वेएइ, जौं समयं घरिया परीवह वेएइ, णो त समय निसीहियापरीसह वेएइ)२ समये शीत પરીષહનું વદન થાય છે, તે સમયે ઉપરીવહનું વદન થતું નથી, તથા જે સમયે ઉષ્ણપરીષહનું વેદના થાય છે, તે સમયે શીતપરીષહનું વદન થતું નથી. તથા જે સમયે ચર્ચાપરીષહનું વદન થાય છે, તે સમયે નધિકી પરીષહનું વેદન થતું નથી, અને જે સમયે નૈધિકી પરીષહનું વેદના થાય છે, તે સમયે यर्यापरीषनु वेहन यतुं नथी. ( एवं अविह बधगस्स वि) प्रमाणे भाई પ્રકારના કર્મને બંધ કરનાર જીવને પણ બાવીશ પરીષહ સહન કરવા પડે छ. ५२न्तु सेवा से साक्षे २० ५२५नु वेहन रे छे. (छबिह बंधगस्स णं भंते ! सराग छउमत्थस्स का परीसहा पण्णता ?) महन्त । श्री भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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