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________________ भगवतीसत्रे असुखाः स्युः, स खलु भदन्त ! किम् आराधकः ? विराधकोवा भवेत् ? गौतम ! स आराधको भवेत्, नो विराधकः स्यात, 'एथवि एतेचेव अद आलावगा, भाणियब्बा, जोव नो विराहए' एवमेतान्यष्टौ पिण्डपातार्थ गृहपतिकुले प्रविष्टस्य, एवं विचारभूम्यादावष्ट, एवं विहारभूमिग्रामादौ गमनेऽष्टौ एवप्रेतानि चतुर्विंशतिः मूत्राणि भवन्ति । - निग्गंथेणय गामाणुगामं दुइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए, तस्सणं एवं भवइ-इहेव ताव अहं' निर्ग्रन्थेन श्रमणेन च ग्रामानुग्रामं व्यतिबजता परिभ्रमता इत्यर्थः चलते २ वह स्थविरों के पास नहीं पहुंच पाता है कि इतने में स्थविर मूक हो जाते हैं। तो ऐसी दशा में हे भदन्त ! वह निर्ग्रन्थ श्रमण आराधक होता है या विराधक होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! वह निर्ग्रन्थ श्रमण ऐसी दशा में आराधक ही होता है विराधक नहीं । 'एत्थ वि एए चेव अट्ठ आलावगा भाणियब्वा जाव नो विराहए' जिस प्रकार से पिण्ड ग्रहण की इच्छा से गृहपति के घर पर गये हुए निग्रन्थ श्रमण के आठ आलापक कहे गये हैं-उसी तरह से विचारभूमि आदि में गये हुए श्रमण निर्ग्रन्थ के आठ आलापक कहे गये हैं, इसी तरह से विहारभूमि-ग्रामादि में जाने पर आठ आलापक कहे गये हैं। इस तरह ये ४ आलापक होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'निग्गंथेण य गामाणुगामं दृहज्जमाणेणं अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ, इहेव ताव अहं' एक ग्राम से दूसरे ग्राम તે પહેલાં તે તે સ્થાવર મૂક થઇ જાય છે. તો હે ભદન્ત ! આ પરિસ્થિતિમાં આલેચના આદિ નહી કરી શકનાર તે નિઝ થને આરાધક ગણી શકાય કે વિરાધક ? ઉત્તર:- હે ગૌતમ ! એવી પરિસ્થિતિમાં તેને આરાધક જ માની શકાય, વિરાધક नही 'एत्थ वि एए चेव अट्ट आलावगा भाणियबा जाव नो विराहए' અહાર પ્રાપ્તિની ઈચ્છાથી કોઈ ગૃહસ્થને ઘેર ગયેલા શ્રમણનિગ્રંથ વિષે જે પ્રકારના આઠ આલાપક કહેવામાં આવ્યા છે, એવા જ આઠ આલાપક નિહારભૂમિ આદિમાં ગયેલા શ્રમણનિગ્રંથ વિષે પણ કહેવા જોઈએ. એજ પ્રમાણે વિહારભૂમિ [ગ્રામાદિ ] માં ગયેલા નિઝ થના પણ આઠ આલાપક હોવા જોઈએ. આ રીતે કુલ ૨૪ આલાપક થાય છે. वे गौतम स्वामी महापा२ प्रभुने मे पूछे थे निग्गंथेण य गामा. णुगामं दुइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, सस्स णं एवं भवइ, इहेव ताव अहं 'मा. समया भी२ ॥ विडा ४२i भनि | श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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