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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका. श.८ उ.५ स. ४ देवलोकनिरूपणम् ६५७ भगवानाह-'गोयमा ! चउनिहा देवलोगा पण्णत्ता' हे गौतम ! चतुर्विधाः खलु देवलोकाः प्रज्ञप्ताः उक्ताः, तानेवाह-'तंजहा-भवणवासि-बाणमंतर-जोइसवेमाणिया' तद्यथा-भवनवासि-बानव्यन्तर-ज्योतिषिक-चमानिकाः, तत्र असुरकुमोरादयो दश भवनवासिनो देवाः यक्षराक्षसादयो दानव्यन्तरा देवाः, चन्द्रमूर्यादयः पञ्चज्योतिषिका देवाः, सौधर्मेशानादयो द्वादश वैमानिकाः देवा स्तत्तल्लोकवासित्वात् तत्तत्पदेन व्यवहियन्ते । अन्ते गौतमो भगवद्वाक्यं स्वीकुर्वन्नाह-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! तदेवं भवदुत्तं सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सर्व सत्यमेवेत्याशयः ॥ मू० ४ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगढल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलित-ललितकलापालापक-प्रविशुद्ध-गधपद्यनैकग्रंथनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहच्छत्रपति-कोल्हापुरराज-प्रदत्त "जैनशास्त्राचार्य" पदभूषित कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि- जैनाचार्य -जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालबतिविरचितायां "श्रीभगवतीमूत्रस्य" "प्रमेयचन्द्रिका"ऽऽख्यायां व्याख्यायां अष्टमशतकस्य पञ्चमोद्देशकः समाप्तः ॥८-५॥ हे भदन्त ! देवलोक कितने प्रकारके कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं। ‘गोयमा' हे गौतम! 'चउम्विहा देवलोगा पण्णत्ता' देवलोक चार प्रकारके कहे गये हैं। ' तंजहा' जो इस प्रकारसे हैं'भवणवासि-वाणमंतर-जोइसिया वेमाणिया' भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक इनमें असुरकुमार आदि १० दस प्रकारके भवनवासी देव होते है । यक्ष राक्षस आदि आठ ८ प्रकारके व्यन्तर देव होते हैं। चन्द्र सूर्य आदि पांच प्रकारके ज्योतिषिक देव होते हैं और सौधर्म ईशान आदि बारह प्रकारके वैमानिक देव होते हैं। १२ना या छ ? उत्तर- ' चउचिहा देवलोगा पण्णता- तंजहा? 3 गौतम ! वना न्या२ । छे. ते मारे। नीय प्रमाणे - 'भवणवासि-वाणमंतरजोइसिया-वमाणिया' (१) भवनवासी, (२) पान०५-तर, (3) ज्योतिषि मन (४) વૌમાનિક અસુરકુમાર આદિ દસ પ્રકારના ભવનવાસી દેવ હોય છે. યક્ષ, રાક્ષસ આદિ આઠ પ્રકારના વાનવ્યન્તર દેવે હાય છે. ચન્દ્ર, સૂર્ય, આદિ પાંચ પ્રકારના તિષિક દે હોય છે અને સૌધર્મ, ઇશાન આદિ બાર પ્રકારના વૈમાનિક દે હોય છે. અહીં श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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