SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 607
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.५ सु. १ परिग्रहादिक्रियानिरूपणम् ५९५ गुण-विरमण-प्रत्याख्यान-पौषधोपवासैः सा जाया भार्या स्वस्त्री अनाया भवति अभार्या भवति? भगवानाह-'हना अनायाभवइ' हे गौतम! हन्त, सत्यम् श्रमणोपासकस्य शीलवतादिविरमणपौषधोपवासान्तैः जाया ते अजाया भवतीति भावः, गौतमः पृच्छति- ‘से केणं खाइणं अटेणं भंते! एवं वुच्चइ-जायं चर'इ नो अनायं चरइ ?' हे भदन्त ! तत् अथ केन कारणेन एवमुक्तपकारेणोच्यते जायां चरति श्रमणोपासकस्य स्त्री सेवते, नो अजायां चरति, तस्य स्त्री भिन्नां न सेवते इति प्रश्न: ? भगवानाह- 'गोयमा! तस्स णं एवं भवइ णो मे माया, णो मे पिया, णो मे भाया, णो मे भगिणी' हे गौतम ! तस्य खलु श्रमणो पामकम्य कृतसामायिकस्य श्रावकस्य एवं वक्षयमाणपकारेण भवति नो मेकाचित् माता, नो मे कश्चित् पिता, नो मे कश्चिद भ्राता, नो मे काचित उत्तर में प्रभु कहते हैं 'हता भवई' हां, गौतम ! उस श्रमणापामक की शील, व्रत विरमण, पौषध और उपवास आदि से जाया अजाया रूप हो सकती है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केणं खाइणं अटेणं भंते ! एवं वुच्चा, जायं चरइ, नो अजाये चरइ' हे भदन्त ! जब उसकी जाया उसीकी अपेक्षा शीलवतादिकों द्वारा अजाया हो सकती है तो फिर ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वह पुरुष उस कृत सामायिकवाले श्रमणोपासककी स्त्रीके साथ व्यभिचार सेवन करता है ? उसकी के से भिन्न स्त्रीके साथ व्यभिचार सेवन नहीं करता है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तस्स णं एवं भवइ, णो मे माया, णो मे पिया, णो भे भाया, णो मे भगिणी' हे गौतम ! कुन सामायिकवाले उस श्रमणोपासक के मन में ऐसा विचार आता है कि मेरी माता नहीं है, मेरा पिता नहीं है, मेरा भाई नहीं है, मेरी बहिन नहीं है 'णो मे उत्तर – — हता, भवइ ' , lai ! Ne, प्रत, गुण, वि२भएJ, प्रत्याभ्यान અને પૌષધપવાસ આદિથી તેની ભાર્યા અભાર્યારૂપ બની જાય છે. वे गौतम स्वामी तेनु ४२ ला भाटे । प्रश्न रे छे - 'से केणं खाणं अटेणं भंते ! एवं वुच्चई, जायं चरइ, नो अजायं चरइ ? ' महन्त ! જે તેના શીલવ્રતાદિ દ્વારા તેની તે ભાર્યા અભાથરૂપ બની શકતી હોય તો આપ શા કારણે એવું કહો છે કે તે જાર પુરુષ સામાયિક ધારણ કરીને બેઠેલા તે શ્રાવકની ભાર્યા સાથે વ્યભિચાર સેવે છે?— તેની અભાય સાથે વ્યભિચાર સેવતો નથી? उत्तर- 'तस्सणं एवं भवड, णो मे माया, णो मे पिया, णो मे भाया, णो मे भगिणी' गौतम । सामायिभा भेडात श्रावना मनभा व वियार श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy