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________________ ५९४ भगवतीसूत्रे श्रमणोपासकस्य खलु सामायिककृतस्य कृतसामायिकस्य श्रमणोपाश्रये आसीनस्य स्थितस्य भार्या स्वधर्मपत्नी कश्चित् जारपुरुषः चरेत् व्यभिचरेत्, 'से णं भंते ! किं जायं चरइ, अजायं चरइ ?' हे भदन्त ! स खलु जारपुरुषः किं जायां श्रमणोपासकस्य जायां स्त्रीं चरति सेवते ? अनायां तस्य स्त्रीभिन्नां वा चरति सेवते यभिचरति ? भगवानाह- 'गोयमा ! जायं चरइ, नो अजायं चरई' हे गौतम ! स जारपुरुषः श्रमणोपासकस्य जायां भार्या चरति सेवते, नो अजायां श्रमणोपासकस्य स्वीभिन्नां चरति व्यभिचरति । गौतमः पृच्छति'तस्स णं भंते ! तेहिं नीलव्ययगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ' हे मदन्त ! तस्य खलु श्रमणोपासकस्य तैः शीलव्रतऐसे श्रावक की, की जो इस समय उपाश्रय में बैठा हुआ है उसको पत्नी के साथ यदि कोई जोर पुरूष व्यभिचार सेवन करता है ‘से णं भंते ! किं जायं वरह, अजायं चरइ' तो वह जार पुरुष उस श्रमणोपासक की स्त्री के साथ व्यभिचार सेवन करता है या उसकी स्त्रीसे भिन्न स्त्री के साथ व्यभिचार सेवन करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा ! जायं चरइ, नो अजायं चरइ' हे गौतम! वह जार पुरुष उस कृत मामायिकवाले पुरुषकी स्त्रीके साथ व्यभिचार सेवन करता है। उसकी स्त्री से भिन्न स्त्रीके साथ व्यभिचार सेवन नहीं करता है। ___अव गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तस्स णं भंते ! तेहिं सीलव्वय गुण वेरमणपचक्खाणपोमहोववासेहिं सा जाया अजाया भवई' हे भदन्त ! उस श्रमणोपासककी शील, व्रत, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषा एवं उपवामों से वह स्त्री क्या उसकी अभार्यारूप हो सकती है ? હે ભદન્ત ! સામાયિક ધારણ કરીને ઉપાશ્રયમાં બેઠેલા શ્રાવકની પત્ની સાથે કોઈ જાર पुरुष व्यनियार ७२, सणं भंते ! कि जायं चरइ, अजायं चरइ ?' तोते જાર પુરુષ તે શ્રાવકની પત્ની સાથે વ્યભિચાર કરે છે, કે તેની પત્ની ન હોય એવી સ્ત્રી साथै व्यनियार सेव छ ? उत्तर- 'गोयमा' गौतम! जायं चरइ, नो अजायं चरई' ते १२ पुरुष सामायि: पा२९५ ४री मेdana पुरुषनी पानी साथे व्यलियार સેવે છે –તેની પત્ની ન હોય એવી સ્ત્રી સાથે વ્યભિચાર સેવતા નથી. , गौतम स्वामी भलावीर प्रभुने पूछे थे 3- 'तस्स णं भंते! तेहि सीलब्धयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ ?' હે ભદન્ત ! શીલ, ગુણ, વ્રત, વિસ્મણ, પ્રત્યાખ્યાન અને પૌષધપવાસની આરાધના કરતા તે શ્રાવકની પત્ની શું તેની અભારૂપ બની જતી નથી. श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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