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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ८. उ. ५ मृ. १ परिग्रहादिक्रिया निरूपणम् ५९३ ममता परिणामः सः अपरिज्ञातो भवति, अप्रत्याख्यातो भवति, अनुमते २प्रत्याख्यातत्वात् ममत्वभावस्य चानुमतिरूपत्वात 'से तेणट्टेण गायमा ! एवं बुच्चइ सय भेंड, अणुगवेसर, णो परायगं भड अणुगवेस' तत् तेनार्थेन हे गौतम ! एवमुक्तक्रमेणोच्यते यत् स्वकीय भाण्डम् अनुगवेषयति, नो परकीय भाण्डम् अनुगवेषयति । गौतमः पृच्छति - 'समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ जायं 'चरेज्जा ?' हे भदन्त ! गवेषणा करता है एसा कहा है । यही बात 'ममत्तभावे पुण से अपरिण्णाए भवह' इस सूत्र द्वारा समझाई गई है । अर्थात् सामायिक करने के निमित्त उतारे गये वस्त्रादिकों की अथवा घरमें रखे हुए पदार्थों की की जिन्हे चोरने चुरो लिया है उसने सामायिक करते समय उनमें अनुमति रूप ममताभाव का प्रत्याख्यान नहीं किया था इस कारण वह सामायिक के बाद अपने भाण्डकी गवेषणा करता है । दूसरे के भाण्डकी गवेषणा नहीं करना । अर्थात् जिन भाण्डोंकी वह गवेषणा कर रहा है - वे भाण्ड उसीके हैं. अनुमति का त्याग नहीं करने से वे उसके स्वामित्व से बहिर्भूत नहीं हुए हैं। 'से तेणट्टेण गोयमा ! एवं बुच्चह, सयं भंड अणुगवेसह, णो परायगं भंडं अणु वेस' इसी तरह से इस सूत्र पाठ द्वारा उक्त विषय का ही सूत्रकार ने उपसंहार किया है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐमा पूछते हैं । 'समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवम्सए अच्छमाण म्स केह जायंचरेज्जा' हे भदन्त ! जिसने सामायिक धारण की हैશાય કરે છે, એમ કહ્યું છે. એજ વાત ममत्तभावे पुण से अपरिणाए भवइ ' આ સૂત્ર દ્વારા સમજાવી છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે સામાયિક કરતી વખત ઉતારેલાં વઆદિ અથવા ધરમાં રાખેલા પદાર્થા કે જેમને કાઈ માણુસ ચારી ગયે હાય છે, તેમાં અનુમતિ રૂપ મમતાભાવના પ્રત્યાખ્યાન તે શ્રાવકે સામાયિક ધારણ કરતી વખતે કર્યાં ન હતા. તેથી તે શ્રાવક સામાયિક પૂરી થયા પછી પેાતાનાં ભાંડાની શેાધ કરે છે-અન્યનાં શોધ કરતો નથી. કારણકે અનુતિરૂપ મમત્વના ત્યાગ નહીં કરવાથી તે ભાંડ ઉપરને તેના અધિકાર ચાલ્યા ગયે। નથી. તેથી જે ભાડાની તે ગવેષણા કરે છે, તે તેનાં જ છે એમ मुडेवामा हो! भाष रहेतो नथी. ' से तेजद्वेणं गोयमा एवं वुच्चइ, सयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंडं अणुगवेसर' मा राते या सूत्रपाठ द्वारा सूत्रारे ઉપર્યુકત વિષ્યને જ ઉપસંહાર કર્યાં છે. हवे गौतम स्वामी महावीर ने अछे - 'समणोवासगस्स णं भंते! सामाईयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ जायं चहेज्जा ' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬ 6
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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