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________________ ५५६ भगवतीमूत्रे --- टीका - जीवाधिकारात् तस्याच्छेद्यतां परूपयितुमाह-- अह भंते ।" इत्यादि । 'अह भंते! कुम्मे कुम्मावलिया, गोहा, गोहाबलिया गोणा, गोणावलिया मणुस्से, मणुस्सा लिया, महिसे, महिसावलिया ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! अथ कूर्मः कच्छपः कूर्मावलिका कच्छपश्रेणिः, गोधा - सर्प विशेषः गोधाafroar गोधापक्तिः, गौः, गवावलिका - गोपङ्क्तिः, मनुष्यः, मनुष्यावलिकामनुष्यपक्तिः, महिषः, महिषावलिका- महिषपक्तिः, 'एएसि णं दुहावा, तिहावा, संखेज्जहावा छिन्नाणं जे अंतरा ते वि णं तेहिं जीवपएसेहिं फुडा?' है ? या उनके किसी अवयव का छेद करता है ? (णो इस समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्यों कि - ( ८ नो खलु तत्थ सत्थं संक्रमह) जीवप्रदेशों पर शस्त्रका असर नहीं होता है । " टीकार्थ - यहां जोच का अधिकार चल रहा है- इसलिये सूत्रकारने उसकी अच्छेद्यता का निरूपण किया है. इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है- ' अह भंते ! कुम्मे, कुम्मावलिया, गोहा, गोहावलिया, गोणा, गोणावलिया, मणुस्से, मणुस्सावलिया, महिसे, महिसावलिया ' हे भदन्त । चाहे कच्छप हो, या कच्छपोंका समूह हो, गोधा - सरीसृपविशेष हो, या गोधाओं का समूह हो, गाय हो या गायोंका समूह हो, मनुष्य हो या मनुष्यों का समूह हो, महिष मै ना हो या महिषोंका समुदाय हो कोई भी क्यों न हा यदि कोई प्राणी उन कूर्म से लेकर महिषावलिका तक के जीवों के दो टुकडे कर देता है, या तीन टुकडे कर देता है या संख्यात टुकडे कर देता है तो ऐसी स्थिति में क्या 'छिन्नाणं जे अंतरा ते विणं तेहिं जीवप' णो इणट्ठे समट्ठे પીડા ઉત્પન્ન કરે છે. અથવા તેના કાઇ ભાગને કાપે છે ! लद्दन्त! आ वस्तु भराभर नथी अशगुडे 'नो खलु तत्थ सत्थं संक्रमइ' वदेशी પર શસ્ત્રની અસર થતી નથી. 1 ટીકા :- અહીંઆ જીવના અધિકાર ચાલે છે. તેટલા માટે ત્રકારે તેની અચ્છેદ્યતાનું નિરૂપણ કર્યું છે. આમાં ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછ્યું છે કે 'aid कुम्मे, कुम्मा लिया, गोहा, गोहावलिया, गोणा, गोणावलिया, मणुस्से, मस्सा लिया, महिसे, महिसावलिया' डे लहन्त ! थाडे अयमो होय } अयमाना સમૂહ હાય, ગાત્રા સરીસૃપ-સજાતિ વિશેષ હાય કે ગેાષાઓના સમૂહ હોય, ગાય હાય કે ગાયના સમૂહ હાય, મનુષ્ય હોય કે મનુષ્યને! સમૂહ હાય, ભેંસ હાય કે ભેંસના સમૂહ હાય તેઓને જો કાષ્ઠ પ્રાણી તેમના મે યા ત્રણ ટુકડા કરે અગર સેંકડા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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