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भगवतीमत्रे केवलज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु के लज्ञानी सर्चद्रव्याणि जानाति, पश्यति, एवं यावत् भावतः । मत्यज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु मत्यज्ञानी मत्यपएसिए जहा नंदीए जाव भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा ऋजुमति मनः पर्यव ज्ञानी मनरूप से परिणत अनन्तप्रदेशी अनन्त स्कन्धोंको जैसा कि नंदीसूत्र में कहा गया है यावत् भावतक जानता है और देखता है। (केवल नाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) हे भदन्त ! केवल ज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (से समासओ चउबिहे पण्णत्ते) वह संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है। (तंजहा) जैसे (व्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और शवकी अपेक्षा (दवओ णं केवलनाणी सव्वव्वाइं जाणइ, पासइ-एवं जाव भावओ) द्रव्य की अपेक्षा केवलज्ञानी समस्त द्रव्योंको जानता है और देखता है । इसी तरहसे वह यावत् भावकी अपेक्षा भी समस्त भावोंको जानता देखता है। (मइ अन्नाणस्स णं भंते ! केवइए विसर पण्णत्ते) हे भदन्त? (मत्यज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते) वह संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है। (तंजहा) जैसे (व्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ) द्रव्यकी દ્રવ્યની અપેક્ષાથી ઋજુમતી મનઃ પર્યાવજ્ઞાની મનરૂપથી પરિણત અનંતપ્રદેશવાળા, અનંત સ્કને જેવી રીતે નંદીસૂત્રમાં વર્ણવ્યું છે-માવત તેવીજ રીતે ભાવપયત જાણે છે અને हे . 'केवलनाणस्स णं भंते केवइए सिए पण्णत्ते'मत ! जानना विषय मा छे ? 'गोयमा' गौतम ! से समासओ चउबिहे पण्णत्ते' त संक्षेप्तथा यार जाना या छ. 'तं जहा' म 'दनओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ'यनी अपेक्षाथी, क्षेत्रनी अपेक्षाथी, 100नी अपेक्षाथी मने भावना अपेक्षाथी दव्यओ णं केवलनाणी सव्वदव्याइं जाणइ पासइ एवं जाव भावओ, द्रव्यनी અપેક્ષાએ કેવળજ્ઞાની સમસ્ત ( સઘળાં) દ્રવ્યોને જાણે છે અને દેખે છે. એ જ રીતે તે યાવત ભાવની અપેક્ષા પર્યત પણ સઘળા ભાવેને જાણે છે અને દેખે છે. 'मइअन्नाणस्प्त णं भंते केवइए चिसए एण्णत्ते' हे भगवन् ! भत्यज्ञानना विषय
॥ या छ ? ' गोयमा' गौतम! ' से समासओ चउबिहे पण्णत्ते'
श्री भगवती सूत्र :