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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ स. ११ ज्ञानगोचरनिरूपणम् ४९१ ज्ञानपरिगतानि द्रव्याणि जानाति, पश्यति, यावत् भावतो मत्यज्ञानी मत्यज्ञानपरिगतं भावं जानाति, पश्यति । श्रुताज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? गौतम! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु श्रुताज्ञानी श्रुताज्ञानपरिंगतानि द्रव्याणि. आख्यापयति, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति, एवं क्षेत्रतः, कालतः, भावतः अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अंपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दओ णं मइ अन्नाणी मइअन्नाणपरिगयाइं दवाइं जाणइ पासइ) द्रव्यकी अपेक्षा मत्यज्ञानी मत्यज्ञान के विषयभूत हुए द्रव्योंको जानता है और देखता है । (जाव भावओ मइ अन्नाणी, मइ अन्नाणपरिगए भावे जाणइ पासइ) इसी तरहसे वह मत्यज्ञानी मत्यज्ञानके विषयभूत हए यावत् भावोंको जानता है और देखता है । (सुय अन्नाणस्सणं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?) हे भदन्त श्रुतअज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (से समासओ चउविहे पण्णत्ते) वह संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है । (तंजहा) जैसे(व्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा कालकी अपेक्षा ओर भावकी अपेक्षा (दव्वओणं सुय अन्नाणी सुय अनाणपरिगयाइं व्वाइं आघवेइ, पनवेइ, पख्वेइ; एवं खेत्तओ कालओ भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा श्रुताज्ञानी श्रुताज्ञानके विषयभूत हुए द्रव्योंको कहता भमशानना विषय सक्षेप्तथी यार ४२ना या छे. 'तं जहा' भो ‘दव्यओ, खेत्तओ, कालओ भावओ' द्र०यनी अपेक्षाथी, क्षेत्रनी अपेक्षाथी, नी अपेक्षाथा अने भावनी अपेक्षायी दव्वओणं मइअनाणी मइअन्नाणपरिगयाइं व्वाइं जाणइ पासई द्रव्यनी अपेक्षाथी भत्यानी, मत्यजानना विषयभूत थयेा द्रव्यान and मन छ 'जाव भावओ मइअन्नाणो मइअनाणपरिगए भावे जाणइ पासइ' तवी शत भत्यज्ञानी भत्यशानना विषयभूत यये। - यावत् - सघा भावाने
छ भने हे छ. 'सुय अन्नाणस्स णं भंते केवइए विसए पण्णत्ते' सह-त! श्रुतज्ञानना विषय ४८मा २ना वामां मा०या छे. 'गोयमा' गौतम ! 'से समासओ चउबिहे पण्णत्ते' ते सतया यार ना छे. 'तं जहा' भो 'दबओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' यानी अपेक्षाथी, क्षेत्रानी अपेक्षाथी अनी अपेक्षायी मन भायी 'दमओणं सुयअन्नाणी मयअन्नाणपरिगयाइ दवाई आघवेइ पण्णवेइ परूवेई एवं खेत्तओ कालओ भावओ'
श्री भगवती सूत्र: