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प्रमेगचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू.११ ज्ञानगोचरनिरूपणम् ४८९ गौतम ! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु अवधिज्ञानी रूपिद्रव्याणि, जानाति, पश्यति, यथा नन्यां यावत् भावतः ! मनःपयेवज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान विषयः प्रज्ञप्तः? गौतम ! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु ऋजुमतिः अनन्तान् अनन्तप्रदेशिकान् यथा नन्यां यावत् भावतः। (ओहिनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) हे भदन्त ! अवधि ज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा ) हे गौतम ! (से समासओ चउन्विहे पण्णत्ते-तं जहा-दव्वओ,खेत्तओ, कालओ, भानओ) अवधिज्ञानका विषय संक्षेप से चार प्रकारका कहा गया है। जैसे-द्रव्य की अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दव्वओ णे ओहिनाणी रूविदव्वाइं जाणह, पासइ) द्रव्यकी अपेक्षा अवधिज्ञानी रूपी द्रव्योंको जानता है देखता है । (जहा नंदीए जाव भावओ) इस तरह जैसा नंदी सूत्र में कहा गया है उसी तरह से यावत् भाव तक जानना चाहिये । (मणपजवनाणस्म णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) हे भद. न्त ! मनःपर्यवज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (से समासओ चउविहे पण्णत्ते ) मनःपर्यवज्ञानका विषय संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है । (तं जहा) जो इस प्रकारसे है. (दव्वओ, खेतओ, कालओ भावओ) द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दवओ णं उज्जुमई अणंते अणंतहे भगवन् ! अवधिज्ञानना विषय मा ना ४ा छे ! 'गोयमा' गौतम ! ' से समासओ चउबिहे पणते तं जहा दबओ खेत्तओ, कालओ, भावओ' અવધિજ્ઞાનના વિષય સંક્ષેપથી ચાર પ્રકારના છે. જેમકે દ્રવ્યની અપેક્ષાથી ક્ષેત્રની अपेक्षाथी, जनी अपेक्षाथा भने मावनी अपेक्षाथी 'दयओणं ओहिनाणी रूवि दबाई जाणइ पासइ' यानी अपेक्षाथी अवधिज्ञानी ३पि द्रव्याने छ भने हम 2. 'हा नंदीए जाव भावओ' मे शत माशते नासूत्रमा वाम मायुछे - यावत् - मा१५५ त समय से. 'मणपजवनाणस्स णं भंते केवइए विसए पण्णत्ते ' भगवन् । मन:पवज्ञानना हा विषय या छ ? ' गायमा' उ गौतम ! 'से समासओ चउबिहे पन्नत्ते' मनःपय वज्ञान विषय संक्षेपयी यार 1२ना या छे. 'तं जहा' ते मा प्रमाणे छे. 'दाओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' द्रव्यनी मपेक्षाथी, क्षेत्रनी २५पेक्षाथी, untी अपेक्षाथी मने मापनी अपेक्षायी दन्नओ णं उज्जुमई अणंते अणंतपएसिए जहा नंदीए जाव भावओ'
श्री. भगवती सूत्र :