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________________ - ४८८ भगवतीसूत्रे प्रज्ञतः ? गौतम ! स समासतश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, द्रव्यतः खलु श्रुतज्ञानी उपयुक्तः सर्व द्रव्याणि जानाति, पस्यति, एवं क्षेत्रतोऽपि कालतोऽपि, भावतः खलु श्रुतज्ञानी उपयुक्तः सर्वभावं जानाति, पश्यति । अवधिज्ञानस्य खलु भदन्त ! कियान् विषयःमज्ञप्तः ? द्रव्यकी अपेक्षा आभिनिबोधिक ज्ञानी सामान्यरूप से समस्त द्रव्योंको जानता है और देखता है । क्षेत्रकी अपेक्षा आभिनिबोधिक ज्ञानी सामान्य से समस्त क्षेत्रको जानता है और देखता है। इसी तरह से कालकी अपेक्षा भी जानना चाहिये और भावकी अपेक्षा भी जानना चाहिये । (सुयनाणस्स णं भंते ! केवइए विस ए पण्णत्ते ) हे भदन्त ! श्रुतज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम । (से समासओ चरविहे पण्णत्ते) श्रुतज्ञानका विषय संक्षेप से चार प्रकारका कहा गया है। (तं जहा) जैसे (दवओ, खेत्तओ, कालओ भावओ) द्रव्यको अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा (दचओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वध्वाइं जाणइ पासइ) द्रव्यकी अपेक्षा श्रुतज्ञानी उपयोगयुक्त होकरके सब द्रव्यों को जानता है और देखता है । ( एवं खेत्तओ वि, कालओ वि, भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वभावे जाणइ पासइ) इसी तरह क्षेत्रकी अपेक्षा भी, कालकी अपेक्षा भी जानना चाहिये और भावकी अपेक्षा श्रत ज्ञानी उपयुक्त होकर समस्त भावोंको जानता है एवं देखता है। દ્રવ્યને જાણે છે. દેખે છે. ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ અભિનિબંધિક જ્ઞાની સામાન્યથી સમસ્ત ક્ષેત્રને જાણે છે અને દેખે છે. એ જ રીતે કાળની અપેક્ષાએ પણ જાણવું જોઈએ અને मानी अपेक्षा५] ad] मे. 'मुयनाणस्स णं भंते केवइए विसए पण्णत्ते' हे भगवन् ! श्रुत ज्ञानना विषय ४८सा या छ ? 'गोयमा 'से समासओ चउबिहे पण्णत्ते' श्रुतज्ञानना विषय सप्तथी यार प्रहारना था छे. 'तं जहा' भो दव्यओ खेत्तओ कालओ भाओ' दयनी अपेक्षा, क्षेत्रनी अपेक्षामे, जना अपेक्षा अने बानी अपेक्षा या२ प्र४२ना छे. 'दन्वओणं मुयनाणी उवउत्ते सबद व्वाइं जाणइ पासइ ' द्रव्यनी अपेक्षा श्रुतहानी उपयोग युरत थधने समस्तसाव्यानो छ, मन हेथे छे. एवं खेत्तओ वि कालओ वि भावओ णं मुयनाणी उनउत्ते सव्वभावे जाणइ पासई' से शत क्षेत्रनी अपेक्षा अन કાળની અપેક્ષાએ સમજવું અને ભાવની અપેક્ષાએ શ્રુતજ્ઞાની ઉપયુકત થઈને સઘળા भावाने रे मने थे छ. 'ओहिनाणसणं भते केवइए विसर पण्णत्ते " श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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