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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.२ सू.१० लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४७१ भजनयैव भवन्ति । अथ साकारोपयोगभेदापेक्षया प्राह - आभिणिबोहियनाणसागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञानसाकारोपयुक्ताः खलु जीवाः कि ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा? भगवानाह-'चत्तारि णाणाई भयणाए' हे गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञान साकारोपयोगवन्तो जीवाः ज्ञानिनो भवन्ति, तेषाश्च चत्वारि ज्ञानानि मतिश्रुतावधिहोता है- इनमें साकार उपयोग आठ प्रकारका और अनाकारउपयोग तीन प्रकारका होता है- सो अब गौतम स्वामी साकार उपयोग के भेदोंको आश्रित करके प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि- 'आभिणियोहिय. नाण सागारोव उत्ताणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव आभिनियोधिक ज्ञानरूप साकार उपयोगमें उपयुक्त होते हैं= वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'चत्तारि जाणाई भयणाए' हे गौतम! आभिनिबोधिक ज्ञानरूप साकार उपयोगवाले जीव ज्ञानी होते हैं उन में चार ज्ञान भजनासे होते हैं । एक मतिज्ञान, दूसरा श्रुतज्ञान, तीसरा अवधि. ज्ञान, और चौथा मनःपर्यवज्ञान. कहने का तात्पर्य यह है कि जब जीवांका मतिज्ञानमें उपयोग होता है- तब लब्धि की अपेक्षा उनमें चार ज्ञान तक रह सकते हैं क्यों कि एक जीव में एक साथ 'एकादीनि भाज्यानि युगपदे कस्मिन्नाचतुभ्यः' इस सिद्धान्तवाक्यके अनुसार चार ज्ञान तक हो सकते । इसीका नाम भजना है। दो होंगे तो मतिज्ञान
और श्रुतज्ञान, तोन होंगे तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अथवामतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मन:पर्यवज्ञान और चार होंगे तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, તેમાં સાકાર ઉપયોગ આઠ પ્રકારના અને અનાકાર ઉપયોગ ત્રણ પ્રકારના હોય છે. હવે गौतम २वामी स याना लेने उद्देशाने प्रभुने मे पूछे छे :- 'आभिणिबोहियनाणसागारोवउत्ताणं भंते जीवा कि नाणी अनाणी' महत! रे જીવ અભિનિબેધિક જ્ઞાનરૂપ સાકાર ઉપયોગમાં ઉપયુક્ત હોય તેવા છે જ્ઞાની હોય છે है मज्ञानी ?
उत्तर :- चत्तारि नाणाई भयणाए' मामिनिमाधि जान३५ सा४।५योगवा જીવ જ્ઞાની હોય છે. તેઓમાં મતિજ્ઞાન, કૃતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન અને મનઃ પર્યાવજ્ઞાન એ ચાર જ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે છ મતિજ્ઞાનમાં ઉપયોગ થાય છે. ત્યારે લબ્ધિની અપેક્ષાએ તેમનામાં ચાર જ્ઞાન સુધી રહી શકે છે. ४।२९४४ मे १भा मे साथे 'एकादीनि भाज्यानि युगपदे कस्मिन्नाचतुभ्य: એ સિદ્ધાંત વાક્યાનુસાર ચાર જ્ઞાન પર્યત હોઈ શકે છે. તેની સાથે કેવળજ્ઞાન હતું
श्री भगवती सूत्र :