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ममेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ स.९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४६१ मइअन्नाणी य, सुयअन्नाणी य' ये जिहवेन्द्रियलन्धिरहिता ज्ञानिनः, केवलिनः, ते च नियमात् नियमत एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनो भवन्ति, ये च अज्ञानिन एकेन्द्रियास्ते नियमात् द्वयज्ञानिनः एकेन्द्रियाणां सम्यग्दर्शनस्याभावात, विभङ्गाभावाच, तद्यथा मत्यज्ञानिनश्च, श्रुताज्ञानिनश्च भवन्ति, ‘फासिंदियलद्धिया णं अलद्धिया णं जहा इंदियस्स लद्धिया य, अलद्धिया य' स्पर्शन्द्रियलब्धिकाः, तदलब्धिकाः, खलु यथा इन्द्रियलब्धिकाश्च तदलब्धिकाचोक्ताः तथा वाच्या:, तथा च स्पर्शनेन्द्रियलब्धिकाः केवलज्ञानभिन्नाद्यज्ञानचतुष्टयवन्तो भजनया भवन्ति, तथैवाज्ञानत्रयवन्तो वा, स्पर्शनेन्द्रियालब्धिकास्तु केवलिन एव भवन्तीति भावः ॥ सू. ९ ॥ वालोंमें 'मह अन्नाणी य सुय अन्नाणीय' मत्यज्ञान और श्रुताज्ञानवाले होते हैं। तथा जो जिहवेन्द्रिय लब्धिरहित ज्ञानी होते हैं उनमें एक केवलज्ञानी ही होते हैं। जो अज्ञानी एकेन्द्रिय हैं वे नियमसे दो अज्ञानवाले होते हैं । एकेन्द्रिय जीवोंमें सम्यग्दर्शनका अभाव रहता है और विभंगज्ञानका अभाव रहता है। अतः इन्हें दो अज्ञानवालामत्यज्ञानवाला और ताज्ञानवाला कहा गया है। 'फासिदिय लद्धियाणं अलद्धियाणं जहा इंदियलाद्धया य अलद्धिया य' जिस प्रकार से इन्द्रिय लब्धिक और इन्द्रियालब्धिक जीव कहे जा चुके हैं, उसी प्रकार से स्पर्शनेन्द्रियलब्धिक और अलब्धिक जीव भी जानना चाहिये तथा च स्पर्शनेन्द्रियलब्धिक ज्ञानी जीव भजनासे चार ज्ञान और तीन अज्ञानवाले होते हैं। और जो इसकी अलब्धिवाले होते हैं ऐसे वे केवली शाना 4 थे. 'जे अन्नाणी ते नियमा दुन्नाणी' भने २ मशानी हाय छे ते नियमथी मे २मशानवाजा जाप छ भने में अज्ञानामामा मइअनाणी य सुय अन्नाणी य' मत्यज्ञान अने श्रुतासान डाय छे. तथा २ छह दियalvi રહિત જ્ઞાની હોય છે તેમાં ફકત એક કેવળજ્ઞાન જ હોય છે. જે અજ્ઞાની એકેન્દ્રિય હોય છે, તે નિયમથી બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે. એકેન્દ્રિય જેમાં સમ્મદર્શનને અને વિર્ભાગજ્ઞાનને અભાવ હોય છે. એટલે તેઓને મત્યજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન એ બે मनाना वामां या छ. फासिदियलद्धिया णं अलद्धियाणं जहा इंदियलद्धियाय अलद्धियाय' २ शते द्रिय िमने दिया 04 विषे પહેલાં કહેવામાં આવ્યું છે. એજ રીતે સ્પર્શનેન્દ્રિયલબ્ધિવાળા અને તેઓની અલબ્ધિવાળા જીવોના વિષે પણ સમજવું. તેમજ સ્પર્શનેન્દ્રિય લબ્ધિવાળા જ્ઞાની છવ ભજનાથી ચાર
श्री. भगवती सूत्र :