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भगवतीमत्रे केवलिनां तु एकं केवलज्ञानमेवेति भावः । जिभिदियलद्धियाणं 'चत्तारि णाणाई, तिन्नि य अन्नाणाणि भयणाए' जिहवेन्द्रियलब्धिकानां चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि च अज्ञानानि भजनया भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'तस्स अलद्धिया गं पुच्छा' हे भदन्त ! तस्य जिवेन्द्रियस्य अलब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह-गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि' हे गौतम ! जिहवेन्द्रियस्य अलब्धिका ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोऽपि भवन्ति, 'जिह्वेन्द्रियलब्धिवर्जिताः केवलिनः, एकेन्द्रियाश्च, भवन्ति, तत्र 'जे नाणी, ते नियमा एगनाणी केवलनाणी, जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहादो अज्ञान होते हैं। केवलियों में एक केवलज्ञान ही होता है । 'जिभिदियलद्धियाणं चत्तारि गाणाई', तिन्नि य अन्नाणाणि भयणाए जिहवेन्द्रिय लब्धिक जीवों में चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजनासे होते हैं- तात्पर्य यह है कि जिहवेन्द्रियलब्धिक जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं- जो ज्ञानी होते हैं वे केवलज्ञान वर्ज चार ज्ञानवाले भी होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं वे तीन अज्ञानवाले भी होते हैं तथा जो 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' जिहवेन्द्रिय अलब्धिक जीव हैं वे भी ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकारके होते हैं । जिहवेन्द्रिय अलब्धिक जीव एकेन्द्रिय और केवली होते हैं- इनमें 'जे नाणी ते नियमा एगनाणी केवलनाणी' जो ज्ञानी होते हैं वे तो नियमसे एक केवलज्ञानवाले ही होते हैं । 'जे अनाणी ते नियमा दुअनाणी' और जो अज्ञानी होते हैं, वे नियमसे दो अज्ञानवाले होते हैं- दो अज्ञानજે સાસદન ગુણસ્થાનવતી ન હોય તે ત્યારે અજ્ઞાની હોવાથી તેઓમાં આદિના બે मज्ञान डाय छे. वणीमामा ४ वणशान डाय छे. 'जिभिदियलद्धियाणे चत्तारि नाणाई तिन्नि य अन्नाणाणि भयणाए' इन्द्रिय वाणा वाभा यार જ્ઞાન તથા ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. તાત્પર્ય એ છે કે હુવેદ્રિય લબ્ધિવાળા જીવ જ્ઞાની પણ હોય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે. જે જ્ઞાની હોય છે તે કેવળજ્ઞાનને છોડીને ચાર પાનવાળા પણ હોય છે અને જે અજ્ઞાની હોય છે તે ત્રણ જ્ઞાનવાળા પણ हाय . 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' इन्द्रिय मयि । छ शुशानी हाय छ । जानी हाय छ ? 6.:- ‘गोयमा' गौतम! 'नाणी वि अन्नाणी वि' इन्द्रिय म मा ५ ज्ञानी मने अज्ञानी' ४१२॥ हाय 2. इन्द्रिय walpa ७५ मेन्द्रिय भने ५जी जाय छे. तमाम 'जे नाणी ते नियणा एगनाणी केवलनाणी'२ जानी डायत तो नियमथी मे ११
श्री. भगवती सूत्र :