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पमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४३९ ज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया ॥४॥ दानलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकानां पृच्छा ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः, नियमात् एक ज्ञानिनः केवलज्ञानिनः-॥ ५॥ एवं यावत् वीर्यस्य लब्धिः, अलब्धिश्च भणितव्या, बालवीयलब्धिकानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि च अज्ञानानि भजनया, होते हैं । (जे तिन्नाणी, ते आभिणियोहिय नाणी, सुयनाणी
ओहिनाणी) जो तीन ज्ञानवाले होते हैं उनमें आभिनिबोधिक ज्ञानी होते हैं, श्रुतज्ञानी होते हैं और अवधिज्ञानी होते हैं- (तस्स अलद्धिया णं पंचनाणाई, तिन्नि अण्णाणाई भयणाए ) जो जीव चारित्राचारित्र लब्धिवाले नहीं होते हैं उनके भजनासे पांच ज्ञान होते हैं या तीन अज्ञान होते हैं। (दाणलद्धिया णं पंचनाणाई, तिन्नि अण्णाणाई भयणाए) दानलब्धिवाले जीवों के भजना से पांच ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं। (तस्स अलद्धिया णं पुच्छा) हे भदन्त ! जो दानलब्धिवाले जीव नहीं होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नाणी, नो अन्नाणी नियमा एगनाणी केवलनाणी) दानलब्धिसे रहित जीव ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं। ज्ञानी होने पर भी वे नियम से एकज्ञानकेवलज्ञानवाले होते हैं । ( एवं जाव वीरियस्सलद्धी, अलदी य भाणियव्वा) इसी तरहसे वीयलब्धिवाले और इसकी अलन्धिवाले तेमा मालिनिधि भने श्रुज्ञान राय छे. 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहियनाणी' अशाना खाय के तेभा भनिनिमाधि ज्ञानवा, श्रुतवानवा भने भवधिज्ञानवाणा डाय छे. 'तस्स अलद्धियाणं पंचनामाईतिन्नि अन्नाणाई भयणाए'२२ यारियायारिय aunu नथी. तभाने मनायी पाय जान अने त्रय सज्ञान डाय छे. 'दाणलद्धियाणं पंचनाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' होना ७वाने सनाथी पांय शान भने नर अज्ञान डाय छे. 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' मगवान ! धनसन्धि ३ नया होता. ते जानी डाय छ , मशानी होय छे. 'गोयमा।
गौतम! 'नाणो नो अन्नाणी नियमा एगनाणी केवलनाणी' नविरक्षित જીવ જ્ઞાની હોય છે અજ્ઞાની હેતા નથી. અને જ્ઞાનીઓમાં પણ તેઓ નિયમથી કેવળ मे शानी न डाय छे. 'एवं जाव वीरियलद्धि अलद्धिय भाणियव्या' मे शते विय सचिव भने त मvिualm वान विषयमा पण समनपुं. 'बालवीरिय
श्री. भगवती सूत्र :