SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८ भगवतीस्त्रे यथाख्यातचारित्रलब्धिकानां पश्च ज्ञानानि भजनया ३ चारित्राचारित्रलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः, सन्ति एकके द्विज्ञानिनः सन्ति, एकके त्रिज्ञानिनः,ये द्विज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनश्च श्रुतज्ञानिनश्च, ये त्रिज्ञानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिनः, श्रुतलद्धिया, अलद्धिया य भणिया, एवं जाव अहक्खायचरित्तलद्धिया, अलद्धिया य भाणियव्वा, नवरं अहक्खायचरित्तलद्धिया, पंचनाणाई भयणाए) जो जीव सामायिक चारित्रलब्धिवाले नहीं होते हैं, उनमें पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । जिस तरहसे सामायिक चारित्रलब्धिवाले और इसकी अलब्धिवाले जीव कहे गये हैं उसी तरहसे यावत् यथाख्यात चारित्रलब्धिवाले और इस की अलब्धिवाले जीव कहना चाहिये । विशेषता यह है-यथास्यात चारित्रलब्धिवाले जीव भजनासे पांच ज्ञानवाले होते हैं। (चरित्ताचरित्तलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी) हे भदन्त ! चारित्राचारित्र लब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं, या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (णाणी, णो अण्णाणी) चारित्राचारित्र लब्धिवाले जीव ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं। (अत्थेगइया दुण्णाणी, अत्थेगइया तिन्नाणी) इनमें कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक तीन ज्ञानवाले होते हैं । (जे दुन्नाणी, ते आभिणियोहियनाणी य सुयनाणीय) जो दो ज्ञानवाले होते हैं वे आभिनिबोधिकज्ञानी होते हैं, और श्रुतज्ञानी भाणियव्या नवरं अहक्खायचरित्तलद्धिया पंचनाणाई भयणाए'२ ७५ સામાયિક ચારિત્ર્ય લબ્ધિવાળા દેતા નથી. તેઓમાંના પાંચ જ્ઞાન તથા ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. જેવી રીતે સામાયિક ચારિત્રલબ્ધિવાળા અને તેની અલબ્ધિવાળા છોના વિષે કહેલ છે. તે જ રીતે યાવત–ચાખ્યાત ચારિત્ર્યલબ્ધિવાળા અને તેની અલબ્ધિવાળા જીવોના વિષે પણ સમજવું. વિશેષતા કેવળ એટલી જ છે કે યથાખ્યાત यारिय ७१ मनाथा पांय ज्ञानवा डाय छे. 'चरित्ताचरित्तलद्धियाणं भंते जीवा कि नाणी अन्नाणी ? ' है भगवन् ! यायायारिन्य ०१ यानी हाय छे 3 अज्ञानी होय छे ? 'गोयमा' है गौतम! 'नाणी नो अन्नाणी' यारिया-यारित्र्यवाणा 4 सनी लोय छे PAHIL नी. 'अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्थेगइया तिन्नाणी' तमासा मे जानवाणामने 21s a ज्ञानवा डाय छे. 'जे दन्नाणी ते आभिणिवोहयनाणि य मुयनाणी यो ज्ञानव sn. श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy