SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४० भावतीसूत्रे तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भजनया, पण्डितवीर्यस्य लब्धिकानां पञ्चज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकानां मनःपर्यवज्ञानवर्जानि ज्ञानानि, अज्ञानानि त्रीणि च भजनया । बालपण्डितवीर्यलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? त्रीणि ज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया ९ इन्द्रियलब्धिकाः जीवों के विषयमें भी जानना चाहिये । (बालवीरियलद्धिया णं तिन्नि नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई) जो जीव बालवीर्यलब्धिवाले होते हैं उनमें तीन ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजना से होते हैं। (तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाइं भयणाए) बालवीर्यकी लब्धि विनाके जो जीव हैं उनमें पांच ज्ञान भजना से होते हैं । (पडियवीरियलद्धिया गं पंचनाणाई भयणाए) जो जीव पण्डितवीर्य लब्धिवाले होते हैं, उनको पांच ज्ञान भजनासे होते हैं । (तस्स अलद्धियाणं मणपज्जवनाणवजाई णाणाई, अन्नाणाई, तिन्नि य भयणाए) जो जीव पंडितवीर्य लब्धिवाले नहीं होते हैं उनको मनःपर्यवज्ञानको छोडकर चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजना से होते हैं। (बालपडियवोरिय लद्रिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! जो जीव बालपण्डितवीर्य लब्धिवाले होते हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (तिन्नि नाणाइं भयणाए) हे गौतम ! बालपण्डित वीर्यलब्धिवालोंको तीन अज्ञान भजनासे होते हैं। (तस्स अलद्धियाणं पंच लद्धियाणं तिन्नि नाणाई तिन्नि अन्नाणाई'२ ७१ पासवीय सvिeal होय छे. तमनामा १ जान तथा त्रएर मजान मनाथी हाय छे. 'तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाई भयणाए' मालवीय ग्ध विनाना १ छ, तमाम पाय जान मनायी हाय. 'पंडियवीरियलद्धियाणं पंचनाणाई भयणाए 94 परितवायDिeणा डाय छ, तेमने पाय जान मनाथी डाय छे. तस्स अलद्धियाणं मणपज्जवनाणवज्जाइं चत्तारिनाणाइं अन्नाणाइं तिन्निय भयणाए' २७ पडित. વીર્ય લબ્ધિ વિનાના હોય છે તેમને મનઃપર્યાવજ્ઞાન છોડીને ચાર જ્ઞાન તથા ત્રણ અજ્ઞાન मनाथी डाय छे. 'बालपंडियबीरियलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' હે ભદન્ત ! જે જીવ બાલપંડિત વીયલબ્ધિવાળા હોય છે તેઓ શું જ્ઞાની હોય છે કે अज्ञानी डाय छ! 'तिन्नि नाणाई भयणाए' गौतम! मातिवीय साधाणामाने त्र ज्ञान मानाथी डाय छे. 'तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy