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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सू० ८ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४२९
___ मूलम्-दसणलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि. पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, तस्स अलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? गोयमा! तस्स अलद्धिया नत्थि, सम्मईसणलद्धियाणं पंचनाणाई भयणाए, तस्स अलद्धियाणं तिन्नि अण्णाणाइंभयणाए । मिच्छादसणलद्धिया णं भंते! पुच्छा? तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए, सम्मामिच्छादंसणलद्धिया य, अलद्धिया य, जहा मिच्छादसणलद्धिया, अलद्धिया तहेव भाणियव्वा २॥सू. ८॥ ___ छाया- दर्शनलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः, गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि, पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम ! 'दंसणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अनाणी' इत्यादि.
सूत्रार्थ-(दसणलद्धिया गं भंते ! जीवा किं नाणी अनाणी) हे भदन्त ! जो जीव दर्शनलब्धिवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नाणी वि, अनाणी वि) हे गौतम ! दर्शनलब्धिवाले जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं (पंच नाणाइं, तिनि अनाणाई भयणाए) जो ज्ञानी होते हैं उनके पांच ज्ञान और जो अज्ञानी होते हैं उनके तीन अज्ञान भजनासे होते हैं। (तस्स अलद्धियाणं भंते !
'दसणलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' या. सूत्राय :- 'दंसणलद्धियाणं भंते किं नाणी अन्नाणी' हे भगवान् ! रे शन हाय ज्ञानी डायॐ अजाती हाय छ. 6.:- 'गोयमा गौतम ! 'नाणी वि अन्नाणी वि ' Naam । ज्ञानी ५५ डाय छ भने मज्ञानी हाय छे. 'पंचनाणाई तिन्नि अन्नाणाइं भयणाएर ज्ञानी હોય છે તેઓને પાંચ જ્ઞાન અને જે અજ્ઞાની હોય છે. તેઓને ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી हेय छ. 'तस्स अलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' 3 मावा रे
श्री. भगवती सूत्र :