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________________ चन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ सू. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४२७ 9 अण्णाणस्स रहिता जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी' हे गौतम ! अज्ञानलब्धिकाः जीवाः ज्ञानिनो भवन्ति, नो अज्ञानिनः 'पंचनाण । इं भयणाए' अज्ञानालब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भजनया भवन्ति तानि च पूर्वोपदर्शितरीत्या स्वयमूह्यानि । 'जहा अन्नाणस्स लद्धिया अलद्धिया य भणिया, एवं मइअन्नाणस्स सुयअन्नाणस्स य लदिया अलद्धिया य भाणियन्ना' यथा अज्ञानस्य लब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणिताः, एवं मत्यज्ञानस्य श्रताज्ञानस्य च लब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणितव्याः, लब्धिसे रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं अथवा अज्ञानी होते हैं इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'नाणी, नो अन्नाणी' हे गौतम ! अज्ञानलब्धिसे रहित जीव ज्ञानी ही होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं । इनको 'पंचनाणाई भयणाए' पांच ज्ञान भजनासे हैं ये किस प्रकार से होते हैं सो यह बात पहिले जैसी प्रकट की गई हैं उसी तरह जाननी चाहिये । 'जहा अण्णाणस्सलडिया, अलद्धिया भणिया, एवं महसुय अन्नाणस्स लडिया अलडिया वि भाणियन्वा जिस प्रकार से अज्ञानकी लब्धिवाले और अज्ञानकी अलब्धिवाले जीव कहे गये हैं उसी प्रकार से मतिअज्ञान लब्धिवाले एवं मत्यज्ञान अलब्धि वाले, श्रुतअज्ञानलब्धिवाले और श्रुतअज्ञान अलब्धिवाले जीवोंके विषय में भी जानना चाहिये । तथा जिस प्रकार से अज्ञानलब्धिवाले जीवों के तीन अज्ञान भजनासे कहे गये हैं उसी तरहसे मत्यज्ञान और श्रुतअज्ञान लब्धिवाले जीवोंको भी तीन अज्ञान भजनासे कहना चाहिये। અજ્ઞાનલબ્ધિથી રહિત હાય છે તે શું નાની હોય છે કે અજ્ઞાની હાય છે ? :नाणी नो अन्नाणी ' हे गौतम! अज्ञानसन्धिथी रहित भवे। ज्ञानी ४ होय छे. तेथे। अज्ञानी होता नथी. तेमां ' पंचनाणाई भगणाए પાંચ જ્ઞાન ભજનાથી હાય છે. તે કેવી રીતે હેાય છે. તે વાત પહેલાં જેવી રીતે પ્રકટ કરી છે, તેજ રીતે सम सेवी. जहा अन्नागस्स लडिया, अलद्धिया भणिया एवं मइअन्नाणस्स, सुयअन्नाणस्स लद्धिया अलडिया वि भाणियव्वा' ने अरे अज्ञान सवित्राणा અને અજ્ઞાનની અબ્ધિવાળા જીવાના વિષે કહ્યું છે. તેજ રીતે મત્યજ્ઞાનલબ્ધિવાળા અને મત્યજ્ઞાન અલબ્ધિવાળા, શ્રુતાજ્ઞાન લબ્ધિવાળા અને શ્રુતીજ્ઞાન અલબ્ધિવાળા જીવાના વિષયમાં પણ સમજવું. તેવી જ રીતે અજ્ઞાન લબ્ધિવાળા જીવાતે ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી કહેલા છે તેજ રીતે મત્યજ્ઞાન અને શ્રુતાનાન લખ્વિાળા જીવાને પણ ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી સમજવા. અને જેવી રીતે અજ્ઞાન અલબ્ધિવાળા વેાને પાંચ જ્ઞાન [ , 6 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬ -
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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