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________________ ४२६ भगवतीमूत्रे भवन्ति इत्यर्थः, ये तु अज्ञानिनस्ते केचन मत्यज्ञानि-श्रुताज्ञानिनः, केचन मत्यज्ञान-श्रुताज्ञान-विभङ्गज्ञानवन्तश्च भवन्ति, इत्येवमुभयत्र भजनयाऽवसेयाः । गौतमः पृच्छति- 'अनाणद्धिया णं पुच्छा ?' हे भदन्त ! अज्ञानलब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह- 'गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' हे गौतम ! अज्ञानलब्धिका जीवा नोज्ञानिनः, अपितु अज्ञानिनो भवन्ति, तत्र च त्रीणि अज्ञानानि भजनया, केचन अज्ञानलब्धिका द्वयज्ञानिनः, केचन व्यज्ञानि इत्यर्थः । गौतमः पृच्छति'तस्स अलद्धिया णं पुच्छा ?' हे भदन्त ! तस्य अज्ञानस्य अलब्धिका लब्धि और कितनेक मति, श्रुत, अवधि एवं मनः पयवज्ञानवाले होते हैं। तथा जो अज्ञानी होते हैं वे कितनेक मत्यज्ञान श्रुताज्ञानवाले होते हैं और कितनेक मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान एवं विभंगज्ञानवाले होते हैं। इस तरहसे दोनोंमें ज्ञान और अज्ञानकी भजना जानना चाहिये। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'अन्नाणलद्धियाणं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! जो अज्ञानलब्धिवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो नाणी, अन्नाणी' अज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी नहीं होते हैं, किन्तु अज्ञानी होते हैं। इनमें 'तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए' तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । अर्थात् कितनेक अज्ञानलब्धिवाले जीव दो अज्ञानवाले होते हैं और कितनेक तीन अज्ञानवाले होते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव अज्ञान की જે અજ્ઞાની હોય છે તે પૈકી કેટલાક મત્યજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાનવાળા હોય છે અને કેટલાક મત્યજ્ઞાન, કૃતાજ્ઞાન અને વિર્ભાગજ્ઞાનવાળા હોય છે. એ રીતે બે પ્રકારમાં જ્ઞાન અને અજ્ઞાનની ભજના સમજી લેવી. प्रश्न:- 'अन्नाणलद्धियाणं भंते पुच्छा' सहत! रेमज्ञानसावा होय छे ते ज्ञानी डाय छ अज्ञानी होय छ! 8. :- 'गोयमा' गौतम ! 'नो नाणी अन्नाणी' भज्ञान शामियाजा ज्ञानी डाता नथी. तु मज्ञानी । डाय छे. तमामा 'तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' १९ मजान मनायी होय छे. અર્થાત્ કેટલાક અજ્ઞાનલબ્ધિવાળા છવ બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે અને કેટલાક ત્રણ मानवाणा हाय छे. प्रश्न:- 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' महन्त! रे ७५ श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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