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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ सू. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४२३ ज्ञानिनो भवन्ति, नो अज्ञानिनः, तत्र 'अत्थेगइया तिनाणी, अत्थेगइया चउनाणी' सन्ति एकके मनःपर्यवलब्धिमन्तो ज्ञानिनः अवधिकेवलज्ञानस्यैवाभावात् चतुर्जानिनो भवन्ति, तत्र 'जे तिन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी, सुयणाणी, मणपज्जवणाणी' ये त्रिज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिना, श्रुतज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिना भवन्ति, जे चउनाणी ते आभिणिबोहियणाणी, मुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी' ये तु चतुर्सानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनश्च भवन्ति-इति भावः। गौतम पृच्छति- 'तस्स अलद्धिया णं पुच्छा ? हे भदन्त ! तस्य मनःपर्यवज्ञानस्य अलब्धिका लब्धिरहिताः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह- 'गोयमा! णाणी वि, अन्नाणी वि' हे गौतम ! मनःपर्यवज्ञानलब्धिरहिताः जीवाः ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोमनःपर्यवज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी ही होते हैं अज्ञानी नहीं होते । इनमें 'अत्थेगइया तिन्नाणी, अत्थेगइया चउनाणी' कितनेक मनःपर्यवज्ञानलब्धिवाले जीव अवधिकेवलज्ञानके अभावसे मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी होते हैं तथा कितनेक केवलज्ञानके अभावसे चार ज्ञानी- मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी होते हैं । यही बात 'जे तिन्नाणी, ते आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, मणपजवनाणी' इन सूत्रपाठोंसे प्रकट की गई हैं। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'तस्स अलद्धियाणं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त! जो मनःपर्यवज्ञानलब्धिसे रहित होते हैं-ऐसे जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! 'णाणी वि अन्नाणी वि' मनःपर्यवज्ञानलब्धिसे रहित जीव ज्ञानी भी होते हैं और मज्ञानी जात नथा. तभनामा 'अत्थेगइया तिन्नाणी, अत्थेगइया चउनाणी' કેટલાક મન:પર્યવજ્ઞાન લબ્ધિવાળા છ કેવળજ્ઞાનના અભાવમાં મતિજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની અને મન:પર્યવજ્ઞાની હોય છે અને કેટલાક કેવળ જ્ઞાનના અભાવમાં મતિજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની અવધિજ્ઞાની અને મન:પર્યાવજ્ઞાની એ ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે. એક વાત 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जवनाणी, जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी, मणपज्जवनाणी' से सूत्रा समाया छे. प्र :- तस्स अलद्धियाणं भंते पुच्छा 'Hera ! रे मन:वानसहित डाय छ वा । ज्ञानी डाय छ, अज्ञानी ? 6. :- 'गोयमा' है गौतम! 'नाणी वि अन्नाणी वि' भन:५वज्ञान auथी हित ज्ञानी श्री. भगवती सूत्र:
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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