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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ . ६ लब्धिस्वरूपनिरूपणम्
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टीका - अधुना नवमे लब्धद्वारे लब्धिभेदानाह - 'कइविहा णं भंते' इत्यादि । 'कविहाणं भंते ! लद्धी पण्णत्ता ?" गौतमः पृच्छति - हे भदन्त कतिविधा कियत्प्रकारा खलु लब्धिः प्रज्ञप्ता तत्र लब्धिः तत्तत्कर्मक्षयादितः आत्मनो ज्ञानादिगुणलाभः प्रज्ञप्ता ? कथिता ? भगवानाह - 'गोयमा ! दसविहा लद्धी पण्णत्ता' हे गौतम ! दशविधा लब्धिः प्रज्ञप्ता, तदेवाह - 'तंजहा १ नाणलद्धी, २ दंसणलद्धी, ३ चरितली, ४ चरिता चरित्तलद्धी, ५ दाणलद्धी, ६ लाभलद्वी, ७ भोगलद्धी, ८ उभोगलद्धी, ९ वीरियलद्धी, १० इंदियलद्धी, ' तद्यथा १ ज्ञानलब्धिः, २दर्शनतीन अज्ञान होते हैं । और जो विभंग ज्ञान लब्धि से रहित होते हैं उनके भजना से पांच ज्ञान होते हैं या नियम से दो अज्ञान होते हैं ।
टीकार्थ- सूत्रकारने इस नौवे लब्धिद्वारमें लब्धि के भेदोंको कहा है, इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है कि 'कह विहाणं भंते ! लद्धी पण्णत्ता' हे भदन्त ! लब्धियां कितने प्रकारकी कही गई हैं ? प्रतिबन्धक कर्म के क्षयादिक से आत्माको ज्ञानादिक गुणोंका लाभ होना इसका नाम लब्धि है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'दसविहा लद्वी पण्णत्ता' लब्धियां दश प्रकार की कही गई हैं। जो इस प्रकार से हैं- 'नाणलद्वी' एक ज्ञनलब्धि, दूसरी 'दंसणलद्धी' दर्शनलब्धि, तीसरी 'चरिचलद्धी' 'चारित्रलब्धि, चौथी 'चरिताaftaat' चारित्राचारित्रलब्धि, पांचवी 'दाणलद्धी' दानलब्धि, छठी 'लाभलद्धी' लाभलब्धि, सातवीं 'भोगलद्धी' 'भोगलब्धि, आठवीं 'उब भोगलद्धी' उपभोगलब्धि, नौवीं 'वीरियलद्धी' वीर्यलब्धि, दशवीं નિયમથી ત્રણ અજ્ઞાન હોય છે અને વિભગજ્ઞાનલબ્ધિ વિનાના વેાને તેમને ભજનાથી પાંચ જ્ઞાન હોય છે અગર નિયમથી એ અજ્ઞાન હોય છે.
अर्थ :
સૂત્રકારે આ નવમાં લબ્ધિદ્વારમાં લબ્ધિના ભેદે કલા છે. એમાં गौतम खाभी प्रमुखे खेवुं पूछे छे ! ' कइविहाणं भंते लद्धी पण्णत्ता ' के लवन्त ! લબ્ધિઓ કેટલા પ્રકારની કહેલી છે. પ્રતિબંધક કર્મના ક્ષાદ્ધિથી આત્માને જ્ઞાનાદિક मुशनाभ थव। तेनुं नाम सम्धि छे, 3. - ' गोयमा ' हे गौतम! ' दसविहा लद्धी पण्णत्ता' सम्धि हश अारती उसी छे ने या अहारे ४. नाणलद्धी १, ज्ञानसन्धि १, दंसणलद्धी २, न सधि २, चरितलद्धी ३, यारित्र्य सम्धि चरित्ताचरितलद्धी ४, यारित्र्या यरित्र्य सम्धि ४, दाणलद्धी ५, हान सकि ५, लाभलद्धी ६, साल अघि ६, भोगलद्धी ७, लोग सम्धि ७, उनभोग लद्धी ८, उपलोग अधि८, वीरियलद्धी ९, विर्य सम्धि, इंदिय लद्धी १०,
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श्री भगवती सूत्र :