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________________ ४०२ भगवतीमत्रे तस्य अलब्धिकाः खलु पृच्छा ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः, पंच ज्ञानानि भजनया, यथा अज्ञानस्य लब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणिताः, एवं मत्यज्ञानस्य श्रुताज्ञानस्य च लब्धिकाः, अलब्धिकाश्च भणितव्याः, विभङ्गज्ञान लब्धिकानां श्रीणि अज्ञानानि नियमात्, तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भजनया, द्वे अज्ञाने नियमात् ।। मू० ६ ॥ होते हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम । (नो नाणी, अनाणी तिन्नि अनाणाई भयणाए) अज्ञान लब्धिवाले जीव ज्ञानी नहीं होते हैं किन्तु अज्ञानी ही होते हैं। इस पर भी वे भजना से तीन अज्ञानवाले होते हैं। (तस्स अलद्धियाणं पुच्छा) हे भदन्त ! जो जीव अज्ञान लब्धि से रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं। (नाणी, नो अनाणी-पंच नाणाई भयणाए) हे गौतम ! अज्ञान लब्धि से रहित जीव ज्ञानी होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं। ज्ञानी होने पर भी वे भजना से पांच ज्ञानवाले होते हैं। (जहा अन्नाणस्स लद्धिया अलद्धिया य भणिया एवं मइ अन्नाणस्स सुय अन्नाणस्स य लद्धिया य अलद्धिया य भाणियव्वा-विभंगनाणलद्धियाणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा, तस्स अलद्धियाणे पंचनाणाइं भयणाए, दो अन्नाणाई नियमा) जिस प्रकार से अज्ञान लब्धिवाले और अज्ञान लब्धि विना के जीव कहे उसी प्रकार से मत्यज्ञान श्रुताज्ञान लब्धिवाले और उनकी लब्धि विना के जीव कहना चाहिये। विभंगज्ञान लब्धिवाले जीवोंके नियम से मशाना 3/4 छ ? ' गोयमा गौतम! नो नाणी अन्नाणी तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' जान मा ७१ ज्ञानी डाता नयी ५५ अज्ञानी डाय छ भने तमा सपनायी अज्ञानवाणा डाय छ ' तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' मात ! ने भज्ञान धि बना डाय छे ते ज्ञानी डाय छे मनानी ? 'नाणी नो अन्नाणी पंचनाणाई भयणाए' गौतम ! अशान सन्धि विनाना १ जानी डाय छे. २मजानी होता नथी. भने मनायी पाय ज्ञानवाणा होय छे. 'जहा अन्नाणस्स लद्धिया, अलद्धियाय भणिया एवं मइअन्नाणस्स, सुयअन्नाणस्स य लद्धियाय, अलद्धियाय भाणियव्वा विभंगनाणलद्धियाणं तिन्नि अन्नाणाइं नियमा तस्स अलद्धियाणं पचनाणाइं भयणाए दो अन्नाणाई नियमा' २ रीत मशान elain अने અજ્ઞાન લબ્ધિ વિનાના જીવ કહ્યા છે તેવી જ રીતે મત્યજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, લબ્ધિવાળા અને તેમની લબ્ધિ વિનાના જીવના વિષયમાં પણ સમજી લેવું. વિર્ભાગજ્ઞાન લબ્ધિવાળા જીને श्री. भगवती सूत्र:
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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