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________________ भगवतीसूत्रो यथा पृथिवीकायिका मिथ्यादृष्टित्वादज्ञानिनः प्रतिपादितास्तथा अज्ञानिनो वक्तव्याः, ते च द्वयज्ञाना एव बोध्याः, किन्तु 'बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा' द्वीन्द्रिग-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां द्वं ज्ञाने, द्वे अज्ञाने च नियमात् नियमतो भवतः, तथा च सासादनगुणस्थानकतया तेषु उत्पद्य मानत्वात, सासादनस्य गुणस्थानकस्य चोत्कृष्टतः षडावलिकामानत्वात् द्वे ज्ञाने नियमतस्तत्र लभ्येते, 'पंचिदिया जहा सइंदिया ' पञ्चेद्रियाः यथा सेन्द्रिय : भजनया चतुर्जानिनः व्यज्ञानि : पूर्व प्रदर्शितास्तथैव भजनया चतुर्जानिनः, व्यज्ञानिनश्च द्रष्टव्याः गौतमः पृच्छति-'अणि दिया णं भंते ! जीवा कि नाणी, दृष्टि होनेसे अज्ञानी प्रकट किये गये हैं, उसी प्रकारसे एकेन्द्रियजीव भी अज्ञानी होते हैं ऐसा जानना चाहिये। इनमें मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान ये दो अज्ञानवाले ही होते हैं। किन्तु 'बेइंदियतेइंदिय चउगिदियाणं दो नाणा दो अन्नाणा नियमा' दो इन्द्रियवालोंमें तीन इन्द्रियवालोंमें और चारइन्द्रियवालोंमें दो ज्ञान और दो अज्ञान नियमसे होते हैं। इनमें दो ज्ञान-भतिज्ञान और श्रुतज्ञान होनेका कारण यह है कि इन जीवोंमें दूसरा सासादन गुणस्थानका होना संभवित कहा गया है इस गुणस्थान का उत्कृष्टकाल ६ आवलिका प्रमाण होता है तबतक इनमें दो ज्ञान होते हैं और इसके सिवाय जीवोंके दो अज्ञान होते हैं। 'पंचिंदिया जहा सइंदिया' पंचेन्द्रियजीव जिस प्रकार से पहिले सेन्द्रिय जीव भजनासे चार ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले प्रतिपादित किये गये हैं उसी प्रकारसे चार ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले भजनासे होते हैं ऐसा जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते દ્રષ્ટિ હોવાથી અજ્ઞાની કથા છે તે રીતે એકેન્દ્રિય જીવોને પણ અજ્ઞાની સમજવા. તેઓ भत्यज्ञान आने श्रुताज्ञानया मेम के भज्ञानवा डाय छे. 'बेइंदिय, तेइंदिय, चउदियाणं दो नाणा दो अनाणा नियमा' मेद्रिया, पद्रियवा! माने या२ धाद्रियવાળો જીવોમાં બેજ્ઞાન અને બે અજ્ઞાન નિયમથી હોય છે તેઓમાં મત જ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન હોવાનું કારણ એ છે કે એ જીવોમાં બીજું સાસાદન ગુણસ્થાનનું દેવું સંભવિત કહેલ છે જ્યાં સુધી એ ગુણસ્થાનને ઉત્કૃષ્ટથી ૬ છ આવલિકાના પ્રમાણથી હોય છે. ત્યાં સુધી भनाभा ज्ञान हाय छे. मने ते सिवायना आमा अज्ञान डाय छे. "पंचिंदिया जहा सेइंदिया' येन्द्रिय , रे प्रथा पडला सेन्द्रि५७७१ नाथा यार જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોવાનું સમર્થન કર્યું છે એજ રીતે ચાર જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા ભજનાથી હોય છે. श्री.भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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