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________________ ३३४ भगवतीसूत्रे यथा नैरयिकाः, ज्योतिषिकवैमानिकानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीण्यज्ञानानि नियमात् । सिद्धाः खलुभदन्त ! पृच्छा, गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः नियमात्, एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनः ॥ सू० ५ ॥ और कितनेक पंचेन्द्रियतिर्यंच तीन ज्ञानवाले होते हैं । (एवं तिनिनाणाणि तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए) इस तरह पंचेन्द्रिय तिर्य चोंमें तीन ज्ञानवाले होनेकी और तीन अज्ञानवाले होनेकी भजना है। (मणुस्सा जहा जीवा तहेव पंचनाणाणि, तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए) मनुष्य सामान्य जीवकी तरह पांचज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले भजनासे होते हैं । (वाणमंतरा जहा नेरइया, जोइसिय-वेमाणियाणं तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियमा) वानव्यन्तर नैरयिक जीवोंकी तरह ज्ञानवाले और अज्ञान वाले होते हैं । ज्योतिषिक और वैमानिकदेवोंके तीनज्ञान और तीनअज्ञान नियमसे होते हैं । (सिद्धाणं भंते ! पुच्छा) हे भदन्त ! सिद्धजीव ज्ञानी होते हैं ? या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! सिद्धजीव (णाणी) ज्ञानी ही होते हैं (नो अन्नाणी) अज्ञानी नहीं होते हैं (नियमा एगणाणी केवलणाणी)ज्ञानी होनेपर भी वे एकज्ञानकेवलज्ञानवाले ही होते हैं अन्यमत्यादिकज्ञानवाले नहीं होते हैं। टीकार्थ-इस सूत्रद्वारा गौतमने नैरयिक आदि जीवोंमें ज्ञानी और अज्ञानी होनेके विषयमें ऐसा पूछा है कि 'नेरइयाणं भंते ! किं णाणी zeas a शानदार डाय छे. 'एवं तिन्नि नाणाणि तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए' એ જ રીતે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નીમાં-ત્રણ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા पानी Hint छ. 'मणुस्सा जहा जीवातहेव पंच णाणाणि तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए' મનુષ્ય સામાન્ય જીવની માફક પાંચ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળાં ભજનાથી થાય છે. 'वाणमंतरा जहा नेरइया जोइसियवेमाणियाणं तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियमा' वानव्य तर यि वानी भाई जान मने. अशानवासाय छे. જતિષીક અને વૈમાનિકદેવ ત્રણ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા નિયમથી હોય છે. 'सिद्धाणं भंते पुच्छ।' मन! सिद्ध ७५ ज्ञानी डाय छे , मज्ञानी! 'गोयमा' गौतम ! सिद्ध ७१ 'नाणी' जानी थाय छे. 'नो अन्नाणी' मजानी रात नथी. 'नियमा एकनाणी केवलनाणी, ज्ञानी डावा छतi તે એક જ્ઞાન કેવળજ્ઞાનવાળા હેય છે અન્ય મત્યાદિક જ્ઞાનવાળા દેતા નથી. ટીકાથ– આ સૂત્ર દ્વારા ગૌતમ સ્વામીએ નરયિક આદિ છના જ્ઞાની અને मज्ञानी होवाना विषयमा मे पूछ्यु छ 'नेरइया णं भते । किं नाणी अन्नाणी' श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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