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अमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ सू. २३ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २५१ षट्कसं योगेन, सप्तकस योगेन, अष्टकम योगेन, नवकस योगेन, दशक संयोगेन, द्वादशकसयोगेन उपयुज्य उपयुक्तेन उपयोगपूर्वक विचार्येत्यर्थः यत्र यावन्तः संयोगा उत्तिष्ठन्ते यथोचितं सम्भवन्ति ते सर्वे संयोगाः द्विकादिकाः भणितव्याः, प्रयोगादिपरिणतपश्चादिद्रव्यविषयकाभिलापश्चैवम्'पंचभंते ! दया कि पओगपरिणया, मीसापरिणया, वीससापरिणया? गोयमा! पओगपरिणया वा, मीसापरिणया, वीससापरिणया वा, अहवा एगे पओग परिणए, चत्तारि मीसापरिणया' इत्यादि । अत्र च एकत्वस योगे त्रयः द्विक भी होते हैं, मिश्रपरिणत भी होते हैं, विस्रसा परिणत भी होते हैं इत्यादि । इसी तरहसे पांच छह आदिसे लेकर अनन्तसंख्या पर्यन्तके द्रव्य भी प्रयोगमिश्र और विस्रसा परिणत होते हैं। जैसे स्वतंत्र एकमें और दोके और तीनके संयोगमें वहां पर विकल्प होना प्रकट किये गये हैं उसी तरहसे इन सबमें भी स्वतंत्र एकमें और दो एवं तीन आदिके संयोगमें विकल्प होते हैं ऐसा जानना चाहिये । इसी बातको टीकाकार प्रकट करते हैं कि प्रयोग आदि परिणत पञ्चद्रव्यादि विषयक अभिलाप इस प्रकारसे कहना चाहिये 'पंचभंते ! दव्वा किं पओगपरिणया, मीसा परिणया' हे भदन्त ! पांच द्रव्य क्या प्रयोग परिणत होते हैं ? मिश्रपरिणत होते हैं ? 'वीससा परिणया, वा विस्रसापरिणत होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'पओगपरिणया वा, मीसापरिणया वा वीससापरिणया वा' पांच द्रव्य प्रयोगपरिणत भी होते हैं मिश्रपरिणत भी होते हैं, वित्रसापरिणत भी होते हैं। 'अहवा एगे पओगपरिणए, चत्तारि પરિણત પણ હોય છે ઇત્યાદિ. તે જ રીતે પાંચ, છ આદિથી લઈને અનંત સંખ્યા પર્વતના દ્રવ્ય પણ પ્રયોગ, મિશ્ર અને વિશ્વસા પરિણત હોય છે, જેમકે- સ્વતંત્ર એકમાં અને બેમાં અને ત્રણના સંગમાં ત્યાં વિકલ્પ થતા પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે એ જ રીતે આ બધામાં પણ સ્વતંત્ર એકમાં અને બે અને ત્રણ આદિના સોગમાં વિક૯૫ થાય છે તેમ સમજવું. એ જ વાતને ટીકાકાર પ્રગટ કરે છે કે પ્રવેગ આદિ પરિણુત ५य न्याहि विषय सधी मिसाय २१ शते समो. 'पंच भंते दव्या किं पओगपरिणया, मीसा परिणया' हे भगवन पांय द्रव्यो शुप्रयोगपति डाय छेभि परिणत डाय छ ? 'वीससा परिणया' विखसा परिणत हाय छे. उत्तरमा प्रभु ४ छ ?- 'गोयमा' 3 गौतम पओगपरिणया वा मीसा परिणया वा, वीससापरिणया वा' पाय द्रव्य, प्रयोग परियत, मिश्र परिणत, विससा
श्री. भगवती सूत्र :