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________________ २५० भगवती एकत्वे एकः, इत्येवं नव, त्रिकयोगे तु य एव भवन्ति, इत्येवं सर्वे पश्चदश भवन्ति अथ पञ्चादिद्रव्यपुद्गलपरिणामप्रकरणानि अतिदिशन्नाह- ' एवं एएणं कमेणं पंच छ सत्त जाव दस संखेजा, असंखेज्जा अणता य दवा भाणिया,' एवम् उपर्युक्तरीत्या एतेन द्रव्यचतुष्कान्तपरिणामविषयकेण अभिलापक्रमेणैव पञ्च, षट्, सप्त, यावत्- अष्ट, नव, दश, संख्येयानि, अमरूयेयानि, अनन्तानि च द्रश्याणि भणितव्यानि, दुया संजोएणं, तिया संजोएणं, जाब दस संजोएणं, बारस संजोएणं उवर्जु जिऊण जत्थ जत्तिया संयोगा उद्देति ते सव्वे भाणियमा द्विकस योगेन, त्रिकसंयोगेन, यावत् - चतुष्कस योगेन, पञ्चकस योगेन, के त्रित्व में एक विकल्प, तथा दोनों के भी द्वित्व में एक विकल्प, तथा द्वितीय के त्रित्वमें और अन्यके एकत्व में एक विकल्प इस तरह से कुल विकल्प ३+२+३=१५ होते हैं। अब सूत्रकार ऐसा प्रकट करते हैं कि-'एवं एएणं कमेणं पंच, छ सत्त, जाव दस संखेजा, असंखेज्जा अणंता य दव्या भाणियव्वा' जैसा यह द्रव्य चतुष्कान्त परिणाम विषयक अभिलाप प्रकट किया गया है इसीके अनुसार पांच, छ, सात, यावत्आठ, नौ दश, संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्योंको भी द्विकसंयोगसे, त्रिकसंयोगसे, यावत्-चतुष्कसंयोगसे पांचके संयोगसे, छहके संयोगसे, सातके संयोगसे, आठके संयोगसे, नौके संयोगसे, दशके संयोगसे, द्वादशके संयोगसे, उपयोगपूर्वक विचार करके कहना चाहिये । अर्थात् जिस प्रकारसे चार द्रव्योंके प्रकरणमें ऐसा प्रकट किया गया है कि ये चारों द्रव्य प्रयोगपरिणत બીજાના ત્રિવમાં એક વિકલ્પ અને બંનેના, ત્વિમાં એક વિકલ્પ તથા દ્વિતીયના ત્રિત્વમાં અને અન્યના એકત્વમાં એક વિકલ્પ એ રીતે આ નવ વિકલ્પ થાય છે. ત્રિકના यामा वण . (४५ सय छे. मेरीत व वि४६५ 3+ + 3% १५ याय छे. वे सूत्र२ पाय, छ, विगेरेना विषयमा नाचे प्रमाणे ४ छ:- एएणं कमेणं पंच, छ, सत्त जाव, दस, संखेजा, असंखेज्जा अणंता य दया भाणियव्या' જેવી રીતે આ દ્રવ્ય ચતુષ્કાન્ત પરિણામ વિષયક અભિલાપ પ્રગટ, કરેલ છે એ જ રીતે पाय, ७, साता-यावत-2418, नव, श, सयात, पात, मने मानतद्रव्यान ५९य त्रि संयोगथी, - यावत् - यतु सत्यागथी, पांयना सयोगथी, छन। संयोगथी, સાતના સંયોગથી નવના સંયોગથી, દશના સંગથી, બારના સંયોગથી ઉપયેગપૂર્વક વિચાર કરીને સમજી લેવું. અર્થાત જે પ્રકારે ચાર દ્રવ્યોના પ્રકરણમાં જેટલું પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે કે એ ચારે દ્રવ્ય પ્રયોગપરિણત હોય છે, મિશ્ર પરિણત પણ હોય છે, વિસસા श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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