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________________ पमेयचन्द्रिका टीका श. ८उ.१ स. २३ मूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २४९ भवन्ति ? भगवानाह- 'गोयमा! मणप्पओगपरिणया वो वइप्पओगपरिणया वा कायप्पओगपरिणया वा' हे गौतम ! प्रयोगपरिणतानि द्रव्याणि मनःप्रयोगपरिणतानि वा, वचःप्रयोगपरिणतानि वा, कायपयोगपरिणतानि वा भवन्ति इत्यादि सर्वद्रव्यचतुष्कप्रकरणोपलक्षित द्रष्टव्यम् , तच्च पूर्वोक्तानुसारेण आयत. संस्थानपर्यन्तं यथोचितमवसेयम् , अत्र च पुद्गलद्रव्यचतुष्कपरिणामे प्रयोगमिश्रवित्रसापरिणतेषु त्रिषु एकत्वे त्रयः, द्विकयोगे तु नव, तथाहि-आद्यस्य एकत्वे द्वयोश्च क्रमेण त्रित्वे द्वौ, एवम् आधस्य द्वित्वे द्वयोरपि क्रमेणैव द्वित्वे द्वौ, तथाऽऽद्यस्य त्रित्व द्वयोश्च क्रमेणैकत्वे द्वौ, एवम् द्वितीयस्यैकत्वे अन्यस्य त्रित्वे एकः, तथा द्वयोरपि द्वित्वे एकः, तथा द्वितीयस्य त्रित्वे अन्यस्य परिणत होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- हे गौतम! 'मणप्पभोग परिणया वा, वइप्पओगपरिणया वा, कायप्पओगपरिणया वा जो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं वे मनप्रयोगपरिणत भी होते हैं, वचन प्रयोग परिणत भी होते हैं और कायप्रयोगपरिणत भी होते हैं । इत्यादि समस्त कथन द्रव्यचतुष्क के प्रकरणमें कहे गये अनुसार आयतसंस्थान पर्यन्त यथोचित जानना चाहिये । इस पुद्गल द्रव्यचतुष्कके परिणाम में प्रयोग, मिश्र, विस्रसापरिणत तीन में एकत्वमें तीन विकल्प होते हैं । द्विक के योगमें ९ विकल्प होते हैं. जो पूर्वमें इस प्रकार से प्रकट किये गये हैं-आदि के एकत्वमें और दो के क्रम से त्रित्व में दो विकल्प, इसी तरह आदि के द्वित्व में और दोके भी क्रम से द्वित्व में दो विकल्प तथा आदि के त्रित्व में और दो के क्रमशः एकत्व में दो विकल्प, इमी तरह से द्वितीय के एकत्वमें और दूसरे परिणत खाय के ? उत्तर- 3 गौतम 'गोयमा' 'मणप्पओग परिणया वा वइप्पओग परिणया वा, कायप्पओगपरिणया वा' रे द्रव्य प्रयोगपरिणत डाय छे ते मनः પ્રયોગ પરિણત, વચ: પ્રયોગ પરિણત અને કાયપ્રયોગ પરિણત હોય છે. ઈત્યાદિ સમરત કથન ચાર દ્રવ્યના પ્રકરણમાં કહ્યાનુસાર આયત સંસ્થાન પર્યત ઉચિત રીતે સમજી લેવું. આ પુદગલ દ્રવ્ય ચતુષ્યના પરિણામમાં પ્રયોગ, મિશ્ર, અને વિશ્વસા પરિણત ત્રણના એકતવમાં ત્રણ વિકલ્પ થાય છે. દ્વિકના યુગમાં નવ વિકલ્પ થાય છે જે પહેલાં આ પ્રમાણે દર્શાવેલ છે.- આદિના એકત્વમાં અને બેના ક્રમમાં ત્રિત્વમાં બે વિકલ્પ એ જ રીતે આદિના ધિત્વના અને એના પણ કમથી દિવમાં બે વિકલ્પ તથા આદિના. ત્રિવમાં અને એના ક્રમથી એકત્વમાં બે વિકલ્પ એ જ રીતે દિતીયના એકત્વમાં અને श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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