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________________ १७२ भगवतीमत्रे पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं भवति ? मनुष्यपश्चेन्द्रिय - यावत् औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत वा भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! तिरिक्खजोणिय - जाव परिणए वा, मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए वा. हे गौतम ! पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत द्रव्यं तिर्यग्योनिक यावत् - पञ्चन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं वा भवति, मनुष्यपञ्चेन्द्रिय-यावत् औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं वा भवति, गौतमः पृच्छति'जइ तिरिक्खजोणिय - जाव परिणए किं जलयरतिरिक्खजोणिय-जाव परिणए वा, थलयर०, खायर० एवं चउकओ भेदो जाव खहयराणं' हे भदन्त ! यद् द्रव्यं तिर्यग्योनिक - यावत्-पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायमयोगपरिणत वा भवति ? स्थलचरतिर्यग्योनिकपश्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतम् ? पंचेन्द्रियके औदारिक शरीरकाय प्रयोगसे परिणत होता है ? या मनुष्यपंचेन्द्रियके औदारिक शरीरकाय प्रयोगसे परिणत होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए वा तिर्यग्योनिक पञ्चेन्द्रियके औदारिक शरीरकायमयोगसे भी परिणत होता है, तथा मनुष्यपंचेन्द्रियके औदारिक शरीरकायप्रयोगसे भी परिणत होता है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए किं जलयरतिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा थलयर०, खयर० एवं चउक्कओ भेदो जाच खहयराणं' हे भदन्त ! जो द्रव्य तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रियके औदारिक शरीरकायपयोगसे परिणत होता है, वह क्या जलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय के औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता હાયપ્રગથી પરિણત હોય છે ? તે શું તિર્યંચ યુનિક પંચેન્દ્રિયના દારિક શરીરકાય પ્રયોગથી પરિણત હોય છે? કે મનુષ્યના ઔદારિક શરીરકાયપ્રગથી પરિણત હોય છે ? उत्तर- "गोयमा" गौतम ! “तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा. मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए वा" येन्द्रिय ना मोरिस शरी२प्रयोजथापरियत દ્રવ્ય તિર્યચનિક પંચેન્દ્રિય જીવના દારિક શરીરકાયપ્રયોગથી પણ પરિત હોય છે અને મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના ઔદ્યારિક શરીરકાયપ્રોગથી પણ પરિણત હોય છે. ___गौतम स्वामीन। प्रश्न- " जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए कि जलयर तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा थलयर०, खहयर० एवं चउक्कओ भेदो जाव खड्यराणं" महन्त ! रे द्रव्य तिय योनि ५-यना मोहरिशरी२४५. પ્રોગથી પરિણત હોય છે, તે શું જલચર તિર્યંચનિક પંચેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરકાય श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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