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________________ 9 • प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ सू०१३ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्त्ररूपनिरूपणम् १७१ भवति इत्यर्थः ' एवं जात्र वणस्सइकाइयाणं चउक्कओ भेदो' एवं पर्याप्तकापर्यातसूक्ष्मवादरपृथिवीकायिकवदेव यावत् - अपकायिक- तेजस्कायिक वायुकायिक वनस्पतिकायिकानामपि प्रयोगपरिणतद्रव्यस्य चतुष्ककाः सूक्ष्म-वाद- पर्याप्तका - पर्याप्तकरूपचतुष्प्रकारको भेदो विज्ञेयः, 'बेइंद्रियतेइंदिय - चउरिदियाणं दुयओं भेदो पज्जत्तगा य, अपज्जत्तगाय द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय - चतुरिन्द्रियाणां प्रयोगपरिणतद्रव्यविषये द्विको द्विप्रकारको भेद:- पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च इति विज्ञेयम् गौतम : पृच्छति जइ पंचिदियओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणिय पंचिंदियओरा लियसरीरकायप्प ओगपरिणए मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए ? हे भदन्त ! यद् द्रव्यं पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं तत् किं तिर्यग्योनिकणत भी व्य होता है । ' एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चउक्कओ भेदो' पर्याप्तक अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवीकायिककी तरह ही यावत् अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक इन सबके भी प्रयोगसे परिणत द्रव्यके सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक रूप चार प्रकारके भेद जानना चाहिये | तथा 'बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदियाणं दुयओ भेदो पज्जत्तगा य अपजतगाय दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चौइन्द्रिय इन जीवोंके प्रयोग से परिणत द्रव्यके विषय में पर्याप्त अपर्याप्तकरूप दो भेद जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जह पंचिदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरि ए किं तिरिक्खजोणियपंचिदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए, मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए' हे भदन्त ! जो द्रव्य पंचेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है वह क्या तिर्यग्योनिक - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬ 9 9 वणस्सइकाइयाणं चक्कओ भेदो" पर्याप्त, अपर्याप्त, सूक्ष्म भने महर पृथ्वी अयनी જેમ જ અયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિકના પ્રયેાગથી પરિણત દ્રવ્યના પણ સૂક્ષ્મ, ખાર, પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક રૂપ ચાર ચાર પ્રકારના ભેદ बेइंदिय, तेइंद्रिय, चउरिंदियाणं दुयओ भेदो पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य " द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय मते यतुरिन्द्रिय लवाना प्रयोगयी परिशुत द्रव्यना વિષયમાં પણ પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તકરૂપ ખમ્બે ભેદ સમજવા. સમજવા તથા 66 गौतम स्वाभीना प्रश्न - 'जइ पंचिंदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए, मणुस्स पंचिदिय जाव परिणए ? " हे महन्त ! द्रव्य पंचेन्द्रिय कवना मोहारि४शरीर
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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