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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.१ सू.१३ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १६७ पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! एगिदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए वा, बेइंदिय-जाव-परिणए वा, जाव पंचिंदिय जाव परिणए वा, हे गौतम! औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं द्रव्यम् एकेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत वा भवति, द्वीन्द्रिय-याक्त-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं का, यावत् - त्रीन्द्रिय - चतुरिन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत वा, पञ्चेन्द्रिय-यावत्-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं वा भवति ? गौतमः पृच्छति - 'जइ एगिदिय. ओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं पुढविक्काइयएगिदिय-जाव-परिणए, जाव वणस्सइकाइयएगिदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए वा ?' हे भदन्त ! यद् द्रव्यम् एकेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत तत् किम् है ? अथवा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव के औदारिक शरीर कायप्रयोग से परिणत होता है ? या पंचेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीरकायप्रयोग से परिणत होता है ? उत्तरमें प्रभु कहते है'गोयमा' हे गौतम ! 'एगिदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए वा, बेइंदिय जाव परिणए वा, जाव पंचिदिय जाव परिणए वा' जो द्रव्य औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है, वह द्रव्य एकेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है या द्विन्द्रिय के औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीरकायप्रयोगसे भी परिणत होता है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जइ एगिदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए, किं पुढविकाइयएगिदियजाव परिणए, जाव वणस्सइकाइयएगिदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए' हे भदन्त! जो द्रव्य एकेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है सो क्या वह पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीरकायરિકશરીરકાયપ્રયોગથી પણ પરિણત થાય છે, હીન્દ્રિય જીવના દારિકશરીરકાયપ્રોગથી પણ પરિણત થાય છે, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પંચેન્દ્રિય જીવના ઔદારિક શરીરકાય પ્રયેગથી પણ પરિણત થાય છે. गौतम. २वाभीना प्रश्न - "जइ एगिदिय ओरालियसरीरकायप्पभोगपरिणए, किं पुढविकाइय एगिदिय जाव परिणए, जाव वणस्सइकाइय ओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए ?" हे महन्त ! 2 द्रव्य मेन्द्रिय ७५ना દારિક શરીરકાયોગથી પરિણત હોય છે, તે શું પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય જીવના श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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