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________________ १६८ भगवती सूत्रे पृथिवीकायिकै केन्द्रिय- यावत् औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं वा, यावत्अपकायिक- तेजस्कायिक- वायुकायिक वनस्पतिकायिकै केन्द्रियौदा रिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं वा भवति ? भगवानाह - ' गोयमा ! पुढविकाइय एर्गिदियपग - नाव - परिणए वा जाव वणस्सइकाइयए गिंदिय - जाव परिणए वा ' हे गौतम! एकेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं द्रव्यम् पृथिवीकायिककेन्द्रिय यावत् - औदारिक शरीरकायमयोगपरिणतं वा भवति यावत् - अप्कायिकतेजस्कायिक- वायुकायिक- वनस्पतिकायिकै केन्द्रिय यावत् - औदारिकशरीहकायप्रयोगपरिणत वा भवति, गौतमः पृच्छति- ' जइ पुढविकाइयएर्गिदियओरालि यसरीर - जाव परिणए कि मुहमपुढविकाइय जाव परिणए, बायर पुढनिकाय एर्गिदिय जाव परिणए ?' हे भदन्त ! यद् द्रव्यं पृथिवीकायिके प्रयोगसे परिणत होता है ? या यावत् अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियके औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परि णत होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! ' पुढविकाइय एर्गिदियपओग जाव परिणए वा जाव वणस्सइकाइय एगिंदिय जाव परिणए वा' वह पृथिवीकायिक एकेन्दिय जीवके औदारिक शरी रायप्रयोग से भी परिणत होता है, यावत् अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियके औदारिक शरीर कायप्रयोगसे भी परिणत होता है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि जइ पुढवीकाइय एगिदियओरालियसरीरकाय परिणए किं सुहुमपुढविकाइय जाव परिणए, बायरपुढविकाइय एगिंदिय जाव परिणए' हे भदन्त ! जो द्रव्य पृथिवीकायिक एकेन्द्रियके औदारिक शरीरकायप्रयोમોદારિકશરીરકાયપ્રયોગથી પરિણત હોય છે ? અથવા આકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત હોય છે? " हे गौतम ! " पुढविक्वाइय एर्गिदियप्पओगू जाव गोयमा परिणए वा, जाव णस्सइकाइय एगिदिय जाव परिणए वा પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય જીવના ઔદારિકશરીરકાયપ્રયાગથી પશુ પરિજીત હાય છે, અને અકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક, વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિયના ઔદારિકશરીરકાયપ્રયાગથી પણ પરિણત હાય છે. ઉત્તર 66 - ” તે દ્રશ્ચ गौतम स्वामीनी प्रश्न- “ जइ पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीर जाव परिणए, किं सुदुमपुढविकाइय जाव परिणए, बायरपुढविकाइय एगिंदिय जाव परिणए ? हे लहन्त ! ने द्रव्य पृथ्वीमपिङ मेहेन्द्रियना मोहारि४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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