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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ मृ. १३ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १५७ सत्यमनःप्रयोगपरिणत उच्यते, एवमन्येऽपि पञ्च विज्ञेयाः किन्तु न वरम् - अनारम्भः प्राणातिपात विरमणम्, संरम्भः प्राणातिपातसंकल्पः, असंरम्भः प्राणातिपातसंकल्प विरमणम्, समारम्भः परितापनम्, असमारम्भः अपरितापनम् । गौतमः पृच्छति'ज मोसमणप्पओगपरिणए किं आरंभमोसमणप्पओगपरिणए वा ?" हे भदन्त ! यद् द्रव्यं मृषामनःप्रयोगपरिणतं तत् किम् आरम्भमृषामनः प्रयोगपरिणतं वा भवति ? - ' एवं जहा सच्चेणं तहामोसेण वि' एवं यथा - सत्येन सत्यपदेन प्रश्नोत्तररूपा अभिलापाः प्रतिपादिताः तथा मृषावदेनापि अभिलापाः वक्तव्याः, तथा च मनःप्रयोग है. इस प्रकारके मनः प्रयोग से परिणामको प्राप्त जो द्रव्य पुद्गल है वह आरंभ सत्यमनः प्रयोगपरिणत कहा गया है। इसी प्रकार से अन्य भी पांच जानना चाहिये । प्राणातिपात से विरमण - दूर होना- प्राणातिपातका त्याग करना इसका नाम अनारंभ है, तथा प्राणातिपात करनेका संकल्प करना इसका नाम संरंभ है, प्राणातिपात करनेके संकल्पका त्याग करना इसका नाम असंरंभ है, जीवोंको पीडा पहुंचाना - परितापित करना इसका नाम समारंभ है, जीवोंको पीडा नहीं पहुंचाना - परितापित नहीं करना इसका नाम असमारंभ है । गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं- 'जइमोसमणप्पओगपरिणए किं आरंभ मोसमणप्पओगपरिणए वा' हे भदन्त ! जो द्रव्यमृषामनः प्रयोग से परिणत कहा गया है वह क्या आरंभमृषामनः प्रयोगपरिणत होता है ? अथवा अनारंभमृषामनः प्रयोगपरिणत होता है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि- एवं जहा सच्चेणं तहा मोसेण वि' हे गौतम! जिस પામેલું જે દ્રવ્યપુદ્ગલ હાય છે તેને આરંભ સત્યમનઃ પ્રયાગપરિણત કહે છે. એજ પ્રમાણે બીજાં પાંચ વિષે પણ સમજવું. પ્રાણાતિપાત કરવાના સંકલ્પ કરવા તેનું નામ સરલ છે, પ્રાણાતિપાત કરવાના સંકલ્પનો ત્યાગ કરવા તેનું નામ અસર છે. જીવાને પીટા પહાડવી તેનું નામ સમારભ છે અને જીવાને પીડા ન પહોંચાડવી તેનું નામ અસમારભ છે. गौतम स्वाभीनो प्रश्न- 'जइ मोसमणप्पओगपरिणए कि आरंभमोसमणप्पओगपरिणए वा ? ' हे लहन्त ! ने द्रव्य भूषामनः प्रयोगपरित उडेवामां આવ્યું છે, તે શું આરંભ સુવામનઃ પ્રયાગપરિષ્કૃત હોય છે ? અનાર ભભૂષામન: પ્રયાગપરિણત હોય છે? ઇત્યાદિ ઉપ`કત ૬ પ્રશ્નો અહીં સમજવા. उत्तर- ' एवं जहा सच्चेण तहा मोसेण त्रि' हे गौतम! ने रीते सत्यभनः પ્રયાગપરિણત દ્રવ્યના વિષે અભિલાષ (પ્રશ્નોત્તર) કહેવામાં આવ્યા છે, એ જ રીતે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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