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________________ चन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ सु. १२ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १३५ हे गौतम! चित्रसापरिणताः खलु पुद्गलाः पञ्चविधाः = पञ्चप्रकारकाः प्रज्ञप्ता, तं जहा ' तद्यथा - 'वनपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया' वर्णपरिणताः, गन्धपरिणता, रसपरिणताः, स्पर्श परिणताः, संस्थानपरिणताश्च भवन्ति, 'जे वन्नपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता', ये पुद्गलाः वर्णपरिणतास्ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा' तद्यथा - 'कालवन्नपरिणया जान सुकिल्लत्रन्नपरिणया' कालवर्णपरिणताः यावत् - नीलवर्ण परिणताः, हरिद्रावर्ण परिणताः, लोहितवर्ण परिणताः, शुक्लवर्णपरिणताः भवन्ति । 'जे गंधपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता' ये पुद्गलाः गन्धपरिणताः, ते द्विविधाः प्रतप्ताः, 'तं जहा ' तद्यथा - 'सुन्भि गंधपरिणया वि, दुब्भिगंधपरिणया त्रि' सुरभिगन्धपरिणता अपि, दुरभिगन्धकहे गये हैं वे कितने प्रकार के होते हैं ? विस्रसा परिणतका तात्पर्य स्वभावसे परिणतिको प्राप्त हुए पुद्गलोंसे । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' ! पंचविहा पण्णत्ता' वित्रसापरिणत पुद्गल पांच प्रकार के होते हैं 'तंजहा' जो इस प्रकार से हैं 'वन्नपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया' वर्णपरिणत, गंधपारणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थान परिणत 'जे वनपरि या ते पंचविहा पण्णत्ता' जो वर्णपरिणत पुद्गल हैं वे पांच प्रकारके हैं 'तंजहा' जो इस प्रकार से हैं 'कालवण्ण परिणया जाव सुकिल्लवन्नपरिणया' कालवर्णपरिणत, नीलवर्णपरिणत, लोहितवर्णपरिणत, हरिद्रावर्ण परिणत, शुक्लवर्णपरिणत, जे गंधपरिणया ते दुविहापण्णत्ता' जो जो पुद्गल गंधपरिणत हैं वे दो प्रकारके हैं 'तंजहा' जैसे 'सुभिगंधपरिणया वि, दुब्भिगंधपरिणया वि' सुरभिगंधपरिणत भी और महावीर अलुनो उत्तर- 'गोयमा ! पंचविद्या पण्णत्ता' हे गौतम । विखसा परित यांय अारना होय छे. 'त'जहा' ते यांय प्रमरो नीचे प्रमाणे छे'वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया' वाणु परिष्णुत, गंधयविशुत, रसपरिथुत, સ્પર્ધા પરિણત અને સંસ્થાનપરિણત. 'जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता - तजहा' ने वाणुपस्थित पुछ्गलो म्यां छे, तेभना नीचे अभाये यां२ - 'कालवण्णपरिणया जान सुकिल्लवण्णपरिणया' કાળાવણું પરિણત, નીલવણું પરિણત, લાલવ પરિણત, પીળાવ'પરિષ્કૃત અને શુકલ पति. 'जे गंध परिणया ते दुबिहा पण्णत्ता - तं जहा ' गंधयति पुग छे, तेमना नीचे प्रभागो मे हार के 'सुष्मिगंधपरिणया, दुब्भिगंधपरिणया चि' श्री भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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