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________________ भगवतीसूत्र अल्पतरकं त्रसकाय समारभते । अन्ते उपसंहरति-से तेणद्वेणं कालोदाई ! जाव अप्पवेयणतराए चेव' हे कालोदायिन् ! तत् तेनार्थेन यावत-अग्निकायप्रज्वालकः पुरुषः बहूनां पृथिवीकायादीनां समारम्भकत्वात्, अल्पतरस्यौव तेजस्कायस्य समारम्भकत्वाच महाकर्मादियुक्तः, अग्निकायनिर्वापकस्तु पुरुषः अल्पतराणामेव पृथिवीकायादीनां. समारम्भकत्वात् बहूनामेव च तेजस्कायानां समारम्भकत्वाच अल्पकर्मादियुक्तो भवतीतिभावः ॥सू. ४॥ पुद्गलप्रकाशादिहेतुवक्तव्यता __अनिकायरूपप्रकाशकप्रस्तावात् अचित्तपुद्गलप्रकाशादिवक्तव्यतामाह - 'अस्थि णं' इत्यादि । मूलम्-अस्थि णं भंते ! अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोति, तवेंति, पभासेंति ? हता, अस्थि । कयरे णं भंते ! अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति ? जाव पभासेंति ? । कालोदाई ! कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निस्सिट्टा समाणी समारंभक कहा है। अन्तमें उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं'से तेण?णं कालोदाई ! जाव अप्पवेयणतराएचेव' हे कालोदायिन् ! इसी कारण से मैंने ऐसा कहा है कि अग्निकाय का प्रज्वालक पुरुष अनेक पृथिवीकायादिकों का समारंभक होता है, अल्पतर तेजस्कायिकों का समारंभक होता है. इस कारण वह महाकर्मादिकों से युक्त कहा गया है। तथा अग्निकाय का निर्वापक पुरुष अल्पतर ही पृथिवीकायिकों आदि का समारंभक एवं बहुतर तेजस्कायिकों का विघातक होता है-इस कारण वह अल्पकर्मादिकों से युक्त होता है ऐसा माना गया है ॥सू० ४॥ वाना सभा२म (विराधना) ४२ छे. 'से तेणटेणं कालोदाई ! जान अप्पवेयणतराए चेत हु यी मार! ते २६ मे मे ४ह्यु छ भनिडायने प्रवलित કરનારે પુરુષ અનેક પૃથ્વીકાયિક આદિ જીવોને વિરાધક બને છે અને અલ્પતર તેજસ્કાયિક જીવન વિરાધક બને છે, તે કારણે તેને મહાકર્માદિકથી યુકત કહ્યો છે પણ અગ્નિકાયને ઓલવનાર પુરુષ અલ્પતર પૃથ્વીકાયાદિકેને વિરાધક બને છે અને બહતર તેજસ્કાયિકે વિરાધક બને છે, તે કારણે તેને અપકર્માદિકથી યુક્ત उसो छ. ॥सू. ४॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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