SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 680
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६२ भगवतीसूत्रे किं पकरेइ ? किं आधाकर्म खलु टीका- आहाकम्मं णं भंते ! भुंजमाणे किं चंधड़ ? चिणाइ ? किं उपचिणाइ ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! भुञ्जानः साधुः किम् = कीदृशं कर्म बध्नाति प्रकृतिबन्धमाश्रित्य ? किं कीदृशं कर्म प्रकरोति = स्थितिबन्यापेक्षया, बद्धावस्थाऽपेक्षया वा ?, किं= कीदृश कर्म चिनोति = संगृह्णाति अनुभागबन्धापेक्षया निघत्तावस्थापेक्षया वा ?, कि= कीदृशं कर्म उपचिनोति = प्रदेशव-धापेक्षया निकाचनावस्थया वेति । भगवानाह - ' एवं जहा पढमे सए नवमे उद्देसए तहा भाणियन्त्रं जाव सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं' एवं यथा-प्रथमे शतके नवमे उद्देशके आधाकर्म आहार के उपभोगसे होती है- अतः सूत्रकारने यहां पर आधाकर्म विषयक वक्तव्यता का कथन किया है- इस में गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'आहाकम्मं णं भंते ! भुंजमाणे किं बंध इत्यादि - हे भदन्त ! आधाकर्म दोष से दुष्ट हुए आहार पान का उपयोग करनेवाला साधु प्रकृतिबंध की अपेक्षा से कैसे कर्म का बंध करता है ? स्थितिबंध की अपेक्षासे अथवा बद्धावस्था की अपेक्षा से कर्मको कैसा करता है ? अनुभाग बंध की अपेक्षा से अथवा निघत्तावस्था की अपेक्षा से कैसे कर्म को ग्रहण करता है ? प्रदेशबन्ध की अपेक्षा से अथवा निकाचनावस्था की अपेक्षा से कैसे कर्म का उपचय करता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'एवं सहा पढमे सए नवमे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं' हे गौतम! प्रथम शतक में नौवें उद्देशक में 'यावत् पण्डित शाश्वत है, पण्डितपना આધાક આહારના ઉપયોગથી થાય છે (લાગે છે), તેથી સુત્રકાર આ સૂત્રમાં આધાક વિષયક આહારનું કથન કરે છે આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી महावीर अलुने सेवा प्रश्न पूछे छे - 'आहाकम्मं णं भंते ! भुंजमाणे किं बंध, इत्यादि ?' डे लहन्त ! माधाम्भ होषथी दूषित होय मेवा आहारपालीनो ઉપયોગ કરનારા સાધુ પ્રકૃતિમ ધની અપેક્ષાએ કેવા કર્મોના બંધ કરે છે.? સ્થિતિબંધની અપેક્ષાએ અથવા બદ્ધાવસ્થાની અપેક્ષાએ તે કર્મને કેવું કરે છે? અનુભાગમ ધની અપેક્ષાએ અથવા નિધત્તાવસ્થાની અપેક્ષાએ તે કેવા કર્મોને ગ્રહણ કરે છે? પ્રદેશખધની અપેક્ષાએ અથવા નિકાચનાવસ્થાની અપેક્ષાએ તે કેવા ક્રમના अपव्यय उरे छे ? तेन। उत्तर भायता भहावीर अछे है-' एवं जहा पढमे सए नवमे उद्देसर तहा भाणियव्वं जाव सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं' हे गौतम । શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy