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भगवतीसूत्रे पूर्व वेदना प्रोक्ता, सा च कर्मवशाद् भवति, कर्म च क्रियाविशेषादिति क्रियाधिकारमाह-'से गृणं भंते' इत्यादि ।
मूलम्-‘से णूणं भंते ! हथिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपञ्चक्खाणकिरिया कजइ ? हंता, गोयमा! हथिस्स य कुंथुस्स य जाव कजइ । से केणट्रेणं भंते! एवं बुच्चइ-जाव कजइ ? गोयमा ! अविरइं पडुच्च, से तेणटेणं जाव कजइ ॥सू.४॥
छाया-अथ नूनं भदन्त ! हस्तिनश्च कुन्थोश्च समा एव अपत्याख्यानक्रिया क्रियते ? हन्त, गौतम ! हस्तिनश्च कुन्थोश्च यावत्-क्रियते । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-यावत्-क्रियते ? गौतम ! अविरतिं प्रतीत्य तत् तेनार्यन यावत्-क्रियते ॥ मू० ४॥
'से णूणं भंते' इत्यादि ।
मूत्रार्थ- (से गूणं भंते ! हथिस्स य कुथुस्स य समाचेव अपञ्चक्खाणकिरिया कजा) हे भदन्त ! क्या यह निश्चित है कि हाथी की और कुथु की अप्रत्याख्यान क्रिया समान ही होती है ? (हता, गोयमा ! हथिस्स य कुथुस्स य जाव कजइ ) हे गौतम ! हां यह सत्य है कि हाथीकी और कुंथुकी अप्रत्याख्यान क्रिया समानही होतीहै। (से केणढणंभंते! एवं बुच्चइ, जाव कजइ) हेभदन्त! ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं कि हाथी की और कुथु की अप्रत्याख्यान क्रिया समान ही होती है ? .(गोयमा) हे गौतम ! (अविरइं पडुच्चसे तेणटेणं जाव कजइ) मैने ऐसा जो कहा है वह अविरति को 'से गुण भंते !' त्या
सूत्रा- (से पूण भंते ! हथिस्स य कुंथुस्स य समाचेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ ? ) महन्त! शुमे पात भरी छे ४ हाथीनी भने छोरानी २५प्रत्याभ्यानी जिया समान ५ ? (हता, गोयमा !) ७, गौतम ! (हत्थिस्स य कुथस्स य जाव कजइ) मे पात साथी छे , हाथीनी भने श्रीनी मप्रत्याध्यानी या समान जाय छे. ( से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जाव कज्जइ ?) Art ! ॥ १२णे आ५ मे । छ। हाथीनी अने डीनी अप्रत्याज्यान या समान ५ छ? (गोयमा ) 3 गोतम ! (अविर पडुच्च से तेणद्वेण जाव कज्जइ)मविरतिनी अपेक्षा में मे युं छे.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫