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________________ - ६४० भगवतीसूत्रे ___टीका-छउमत्थे णं भंते ! मणूसे' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! छदमस्थः अवधिज्ञानवर्जितः खलु मनुष्यः किम् 'तीयमणतं सासयं समयं' अतीते व्यतीते अनन्ते अन्तरहिते शाश्वते नित्ये समये व्यतीतानन्तशाश्वतकाले 'केषलेण संजमेण' केवलेन संयमेन-केवलसंयममात्रेण उपलक्षणात् केवलेन तपसा ‘एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियब्वं, जाव अलमत्थु' एवं यथा प्रश्वमशतके चतुर्थे उद्देशके उक्तं तथा अत्रापि भणितव्यं= वक्तव्यम्, यावत् 'अलमस्तु' इत्यन्तम्, तथा च-यावत्करणात्-केवलेन संवरेण, इज्जे' जाव खुड्डियं वा महालियं वा-से तेणटेणं गोयमा ! जाव समे चेव जीवे) हाथी और कुंथुका जीव समान है। जैसा 'रायपसेणीय' सूत्र में कहा उसी तरह से यावत् 'खुड्डियं वा महालियं वा' इस पाठतक जानना चाहिये । इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि हाथी का जीव और कुन्थुका जीव समान ही है ।। टीकार्थ-जीव का अधिकार होने से सूत्रकारने यहां पर छद्मस्थ मनुष्य की बक्तव्यता का कथन किया है-इस में गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि-'छउमत्थे णं भंते मणूसे' हे भदन्त ! अवधिज्ञानवर्जित छद्मस्थ मनुष्य क्या 'तीयमणंतं सासयं समयं' अतीत-व्यतीत, अनन्त शाश्वतकाल में-'केवलेण संजमेण' केवल संयम से उपलक्षण से-केवल तप से, एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव अलमत्थु' जैसा प्रथम शतकमें चौथे उद्देशक में कहा है उसी तरह जाव समेचेव जीवे) हाथी मने पीसना समान छ. मा विषममा शयपसेलाय सत्र' भी खा प्रभारी प्रयन सभा. 'खुड्डियं वा महालियं वा' (धु शरीर भने મારું શરીર) અહીં સુધીનું કથન તે સૂત્રમાંથી ગ્રહણ કરવું. હે ગૌતમ ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે હાથીને જીવ અને કીડીને જીવ સમાન જ છે. ટીકાથ– જીવને અધિકાર ચાલુ હોવાથી સૂત્રકારે આ સત્રમાં છદ્મસ્થ મનુષ્યની વકતવ્યતાનું કથન કર્યું છે- ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે'छउमत्थे णं भंते ! मणसे 3 सह-त! मवधिज्ञानरहित छA२५ मनुष्य शु 'तीयमणंत सासयं समयं सतात (व्यतीत ययेा), मनत (मत सहित) भने शायत (नित्य) समयमा केवलेणं संजमेणं' पण सयमथी, (Saक्षनी अपेक्षा व तपथी) सिद्ध५६ पाभ्यो छे म३।१ ( एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहाभाणियध्वं जाव अलमत्थु ) रेवी शत प्रथम शतना याया शामा यु छ, तेपी शते मी पण सम ले. यावत मरतु मही सुधार्नु ४थन मडी अडए ४२. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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