________________
प्रमेयन्द्रिय टीका श.७ उ. ७ मू०४ असंज्ञीजीवादिनिरूपणम् ६२३ स्यात् ? हन्त, गौतम ! ये इमे असंज्ञिनः प्राणाः, पृथिवीकायिकाः, यावत्वनस्पतिकायिकाः, षष्ठाश्च यावत्-वेदनां वेदयन्ति इति वक्तव्यं स्यात् । अस्ति खलु भदन्त ! प्रभुरपि अकामनिकरणं वेदनां वेदयति ? हन्त, गौतम ! अस्ति । कथं खलु भदन्त ! प्रभुरपि अकामनिकरणं वेदनां वेदयति ? गौतम ! यः खलु नो प्रभुः विना प्रदीपेन अन्धकारे रूपाणि द्रष्टुम्, यः खलु नो प्रभुः पुरतो क्या ऐसा कहा जा सकता है ? (हंता गोयमा!) हां, गौतम ! (जे असनिणो पाणा पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठाय जाव वेयणं बेगूतीति वत्तव्वं सिया) जो ये असंज्ञी प्राणी पृथिवीकायिकसे लेकर वनस्पतिकायिक तक तथा छठे संमूच्छिम जन्मवाले त्रसजीव तक हैं, वे सब अकामनिकरण अनिच्छापूर्वक वेदनाका वेदन करते हैं ऐसा कहा जा सकता है । (अस्थि णं भंते ! पभू वि अकामनिकरणं वेयणं वेएइ) हे भदन्त ! क्या ऐसा है कि प्रभु-समर्थ संज्ञी होते हुए भी जीव अनिच्छापूर्वक वेदनाका वेदन करते हैं ? (हंता, अत्थि) हां, गौतम ! संज्ञी जोव भी अनिच्छापूर्वक वेदनाका वेदन करते हैं। (कहं णं भंते ! पभू वि अकामनिकरणं वेयणं वेएइ) हे भदन्त ! समर्थ होते हुए भी जीव अकामनिकरण अनिच्छापूर्वक वेदनाका वेदन कैसे करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! 'जे णं णो पभू विणा पईवेणं अंधकारंसि रूवाई पासित्तए, जे गं नो पभू पुरओ रुवाई
(हंता गोयमा ) , गौतम ! (जे इमे असन्निको पाणा पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठा य जाव वेयणं वेएतीति वत्तव्वं सिया) પૃથ્વીકાયિકથી લઈને વનસ્પતિકાયિક પર્યન્તના છે અને છઠ્ઠ સંમૂછિમ જન્મવાળા ત્રસ છે, એ બધાં અસંજ્ઞી જીવો અકા મનિકરણ કરે છે એટલે કે અનિચ્છાપૂર્વક
नानु वहन ४२ छ, कोमड़ी शाय छे. ( अस्थि णं भंते ! पभू वि अकाम निकरणं वेयणं वेएइ) महन्त ! सभ मया सज्ञी हाय मेवा पशु मनिन्छ। पूर्व वहनानुं वन ४२ छे ? (हंता, अत्थि ) , गौतम ! संज्ञा ७ ५९] अनिछा५४ वहनानुं वन ४२ छे. (कहणं भंते ! पभू वि अकाम निकरणं वेयणं वेएइ ?) महन्त ! ७१ समर्थ है। छतi ५५(सशी डावा छत ५९) मनिछापू वेदनानुं वहन वी रीते ४२ छ ? (गोयमा !) हे गौतम ( जे ण णो पभू विणा पईवेणं अंधकारंसि स्वाइं पासित्तए, जे णं नो पभू पुरओ रूवाई अणिज्झाइत्ता णं पासिनए, जे णं नो पभू मग्गओ रूबाइं अणवयक्खिता णं पासित्तए, जे णं नो पभू पासो रूवाई
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫