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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ७.२ कामभोगनिरूपणम् पृथिवीकायिकाः किं कामिनो भवन्ति, अथ च भोगिनः भवन्ति ? इति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा ! पढविकाइया णो कामी, भोगी' हे गौतम ! पृथिवीकायिका नो कामिनो भवन्ति, अपि तु भोगिनो भवन्ति, गौतमः पृच्छति-से केणटेणं जाव भोगी ?' हे भदन्त ! तत्केनार्थेन यावत्-पृथिवीकायिका नो कामिनो भवन्ति, अपितु भोगिनो भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! फासिदियं पडुच्च' हे गौतम ! पृथिवीकायिकाः स्पर्शेन्द्रियं प्रतीत्य अपेक्ष्य भोगिनो भवन्ति, पृथिवीकायिकानां स्पर्शेन्द्रियातिरिक्तेन्द्रियाभावेन कामित्वासंभवात् । ' से तेणटेणं जाव-भोगी' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत्-पृथिवीकायिका नोकामिनो भवन्ति, अपितु भोगिनो भवन्ति । 'एवं जाव-वणस्सइकाइया' एवं पृथिवीकायिकवदेव यावत्-अप्कायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, वनस्पतिकायिका अपि स्पर्शेन्द्रियमात्र केन्द्रियतया केवलं भोगिनो भवन्ति, नो कामिनः । 'बेजीव कामी होते हैं ? या भोगी होते हैं उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि गौतम पृथिवीकायिक जीव ‘णा कामी' कामी नहीं होते हैं किन्तु भोगी होते हैं । हे भदन्त ! 'से केणष्टेणं जाव भोगी' ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं कि पृथिवीकायिक जीव कामी नहीं होते हैं किन्तु भागी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' फासिंदियं पडुच्च' मैंने जो पृथिवीकायिक कामी नहीं होते हैं भोगी होते हैं ऐसा जो कहा है वह स्पर्शन इन्द्रियको लेकर कहा है क्यों कि इन जीवोंके केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है अन्य इन्द्रियां होती नहीं हैं । अतः उनमें कामित्वका सद्भाव नहीं हो सकता है। (एवं जाव वणस्सइकाइया) इसी तरहसे अप्रकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव भी कामी नहीं होते हैं भोगी डाय छे. ? मडावी२ प्रभु छ गौतम ! पृथ्वीयि। णो कामी भोगी' કામી હોતા નથી પણ ભેગી હોય છે. ગૌતમ સ્વામી તેનું કારણ જાણવા માટે પૂછે છે કે 'से केणटेणं जाव भोगी। महन्त ! मा५ ॥ २२ मे ४ छ। ३ पृथ्वी કાયિક કામી નથી, પણ ભેગી છે ? તેને ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે ' फासिंदियं पड़च्च , गौतम ! पृथ्वीविडामा ६४ २५शेन्द्रियना । समाव હોય છે શ્રોત્રિન્દ્રિય અને ચક્ષુરિન્દ્રિયના અભાવે તેમનામાં કામી પણ સંભવી શકતું નથી. ५५ २५शन्द्रियने सहमा वाथा लागी पY सलवी श) छ. ' एवं जाव वणस्सह काइया ' से प्रभारी माथि, ते१२४यि, वायुायि४, मने वनस्पति કાયિક છે પણ કામી હેતા નથી પણ ભેગી જ હોય છે, આ બધાં જીવોમાં ફક્ત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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