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भगवती
इंदिया एवं चेव' द्वीन्द्रिया अपि एवमेव एकेन्द्रियवदेव केवलं भोगिनो भवन्ति, नो कामिनः, तेषां श्रोत्रचक्षुर्घाणेन्द्रियाभावात्, किन्तु 'नवरं जिम्भिदियफासिंदियाई पच्च भोगी' नवरं विशेषस्तु एतावानेव यत् - एकेन्द्रियापेक्षया द्वीन्द्रिया जिवेन्द्रिय- स्पर्शेन्द्रिये प्रतीत्य = अपेक्ष्य भोगिनो भवन्ति । 'तेइंदिया वि एवं ar' त्रीन्द्रिया अपि एवमेव - द्वीन्द्रियवदेव, केवलं भोगिनो भवन्ति, नतु कामिनः, किन्तु ' नवरं घाणिदिय - जिभिदिय - फासिंदियाई पडुच्च भोगी ' नवरं विशेषो यत्-त्रीन्द्रियाः जीवाः प्राणेन्द्रिय-जिहवेन्द्रिय- स्पर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य = अपेक्ष्य भोगिनो भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'चउरिंदियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! ही होते हैं । क्योंकि इन सब जीवोंके केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय हो होती है । 'बेइंदिया एवं चेव' दो इन्द्रियजीव भी एकेन्द्रियजीवोंकी तरह केवल भोगी ही होते हैं कामी नहीं होते । क्योंकि इनमें श्रोत्र, चक्षु और घ्राण इनइद्रियोंका अभाव रहता है । 'नवरं जिभिदिय फासिंदियाई पडुच भोगी' अतः दो इन्द्रिय जीवों में जो भोगी पना प्रकट किया गया है वह स्पर्शन और रसना इन्द्रियको आश्रित करके कहा गया है । ' तेइंदिया वि एवंचेव' दो इन्द्रियजीवोंकी तरह ते इन्द्रिय जीव भी ऐसे ही होते हैं। अर्थात् ते इन्द्रियजीवों में केवल भोगीपनाही है, कामीपना नहीं है और यह भोगीपना उनमें स्पर्शन, रसना एवं घाण इन्द्रिय को लेकर है । यही बात 'नवरं घाणिदिय, जिभिदिय फासिंदियाई पडुच्च भोगी' इस सूत्रांश द्वारा स्पर्शेन्द्रियना ४ सहुभाव होय छे, तेथी तेभने लोगी उद्या छे. ' बेड़ दिया एवंचेत्र ' દ્વીન્દ્રિય જીવા પણ ભાગી જ હાય છે, કામી હોતા નથી, કારણ કે તેમનામાં શ્રોત્ર ચક્ષુ અને ધ્રાણુ, એ ત્રણે ઇન્દ્રિયા ને અભાવ होय छे, પરન્તુ " वरं जिभिदियफासिंदियाई पडुच्च भोगी " तेमनामा लिङ्वा इन्द्रिय मने સ્પર્શેન્દ્રિયને સદ્ભાવ હાવાથી તેઓ રસ અને ૫સુખ ભોગવી શકે છે, તે કારણે तेभने (हीन्द्रिय लबोने) लोगी उबा छे. 'इंदिया वि एवं चेव' श्रीन्द्रिय व પણ ભાગી જ હાય છે, કામી હોતા નથી. તેન્દ્રિય જીવેામાં સ્પર્શેન્દ્રિય, ઘ્રાણેન્દ્રિય અને રસનાન્દ્રિયના સદ્ભાવ હેાય છે, તે કારણે તેમને ભેગી કહ્યા છે, તેમાં શ્રોત્રેન્દ્રિય અને ચક્ષુરિન્દ્રિયના અભાવ હાવાથી તેએામાં કામીપણુ સંભવી શકતુ नथी. ये न वात सूत्रठारे या सूत्रांशद्वारा अउट री - 'णवरं घार्णिदिय, जिब्भिदिय, फासिंदियाई पडुच्च भोगी'
हुवे गौतम स्वामी भहावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे
'चउरि दियाणं ” હે ભદન્ત ! ચતુન્દ્રિય જીવા કામી હેાય છે. કે ભાગી હોય છે ? તેના ઉત્તર
पुच्छा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ